आज का श्लोक, ’व्यासः’ / ’vyāsaḥ’
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’व्यासः’ / ’vyāsaḥ’ - महर्षि वेदव्यास, या व्यास जो एक उपाधि है समस्त वेदों को जाननेवाले की,
अध्याय 10, श्लोक 13,
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥
--
(आहुः त्वाम् ऋषयः सर्वे देवर्षिः नारदः तथा ।
असितः देवलः व्यासः स्वयं च एव ब्रवीषि मे ॥)
--
(जैसा कि) आपके बारे में सभी ऋषि, असित, देवल, व्यास, आदि सभी ऋषिगण, देवर्षि नारद, तथा स्वयं आप भी कहते हैं ।
--
अध्याय 10, श्लोक 37,
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ।
--
(वृष्णीनाम् वासुदेवः अस्मि पाण्डवानाम् धनञ्जयः ।
मुनीनाम् अपि अहम् व्यासः कवीनाम् उशना कविः॥
भावार्थ :
वृष्णिवंशियों में वासुदेव (कृष्ण) हूँ, पाण्डवों में धनंजय (अर्जुन), मुनियों में वेदव्यास, तथा कवियो में उशना (शुक्राचार्य / दैत्य-गुरु) मैं (हूँ) ।
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टिप्पणी :
उशना शब्द दो प्रकार से सिद्ध होता है,
यज्ञ का फल चाहनेवाले , सकाम यज्ञ करनेवाले, उशनस् इसलिए शुक्राचार्य / भार्गव का नाम है, जो दैत्य-गुरु हैं । दूसरी ओर उष् धातु से, -जिसमें काव्य-कल्पना फूटती है, जैसे उषा का अर्थ है प्रभात, सूर्योदय के पहले प्रकट होनेवाला प्रकाश,
पुनः जैसे ’वस्’ से (’त्वा’ प्रत्यय से) उषित्वा शब्द प्राप्त होता है, वैसे ही (’शतृ’ / ’शानच्’ प्रत्यय से) ’उशन्’ भी प्राप्त होता है, जिसका तात्पर्य है सुखवादी । कठोपनिषद (अध्याय1, वल्ली1) में ’उशन्’ का अर्थ ’यज्ञों के फल चाहनेवाले’ कहा गया है ।
इस दृष्टि से ’उशना’ की सिद्धि करें तो उशना संज्ञा होती है । जैसे राजन् से राजा, ’उशन्’ से ’उशना’ भी सिद्ध होता है ।
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’व्यासः’ / ’vyāsaḥ’ - maharṣi vedavyāsa,
Chapter 10, śloka 13,
āhustvāmṛṣayaḥ sarve
devarṣirnāradastathā |
asito devalo vyāsaḥ
svayaṃ caiva bravīṣi me ||
--
(āhuḥ tvām ṛṣayaḥ sarve
devarṣiḥ nāradaḥ tathā |
asitaḥ devalaḥ vyāsaḥ
svayaṃ ca eva bravīṣi me ||)
--
Thus the seers call you, the divine sage nārada, and the other sages such as asita, devala, and The Great sage vyāsa also. And You Yourself also tell me the same.
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’व्यासः’ / ’vyāsaḥ’ - महर्षि वेदव्यास, या व्यास जो एक उपाधि है समस्त वेदों को जाननेवाले की,
अध्याय 10, श्लोक 13,
आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥
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(आहुः त्वाम् ऋषयः सर्वे देवर्षिः नारदः तथा ।
असितः देवलः व्यासः स्वयं च एव ब्रवीषि मे ॥)
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(जैसा कि) आपके बारे में सभी ऋषि, असित, देवल, व्यास, आदि सभी ऋषिगण, देवर्षि नारद, तथा स्वयं आप भी कहते हैं ।
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अध्याय 10, श्लोक 37,
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ।
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(वृष्णीनाम् वासुदेवः अस्मि पाण्डवानाम् धनञ्जयः ।
मुनीनाम् अपि अहम् व्यासः कवीनाम् उशना कविः॥
भावार्थ :
वृष्णिवंशियों में वासुदेव (कृष्ण) हूँ, पाण्डवों में धनंजय (अर्जुन), मुनियों में वेदव्यास, तथा कवियो में उशना (शुक्राचार्य / दैत्य-गुरु) मैं (हूँ) ।
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टिप्पणी :
उशना शब्द दो प्रकार से सिद्ध होता है,
यज्ञ का फल चाहनेवाले , सकाम यज्ञ करनेवाले, उशनस् इसलिए शुक्राचार्य / भार्गव का नाम है, जो दैत्य-गुरु हैं । दूसरी ओर उष् धातु से, -जिसमें काव्य-कल्पना फूटती है, जैसे उषा का अर्थ है प्रभात, सूर्योदय के पहले प्रकट होनेवाला प्रकाश,
पुनः जैसे ’वस्’ से (’त्वा’ प्रत्यय से) उषित्वा शब्द प्राप्त होता है, वैसे ही (’शतृ’ / ’शानच्’ प्रत्यय से) ’उशन्’ भी प्राप्त होता है, जिसका तात्पर्य है सुखवादी । कठोपनिषद (अध्याय1, वल्ली1) में ’उशन्’ का अर्थ ’यज्ञों के फल चाहनेवाले’ कहा गया है ।
इस दृष्टि से ’उशना’ की सिद्धि करें तो उशना संज्ञा होती है । जैसे राजन् से राजा, ’उशन्’ से ’उशना’ भी सिद्ध होता है ।
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Chapter 10, śloka 13,
āhustvāmṛṣayaḥ sarve
devarṣirnāradastathā |
asito devalo vyāsaḥ
svayaṃ caiva bravīṣi me ||
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(āhuḥ tvām ṛṣayaḥ sarve
devarṣiḥ nāradaḥ tathā |
asitaḥ devalaḥ vyāsaḥ
svayaṃ ca eva bravīṣi me ||)
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Thus the seers call you, the divine sage nārada, and the other sages such as asita, devala, and The Great sage vyāsa also. And You Yourself also tell me the same.
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Chapter 10, śloka 37,
vṛṣṇīnāṃ vāsudevo:'smi
pāṇḍavānāṃ dhanañjayaḥ |
munīnāmapyahaṃ vyāsaḥ
kavīnāmuśanā kaviḥ |
--
(vṛṣṇīnām vāsudevaḥ asmi
pāṇḍavānām dhanañjayaḥ |
munīnām api aham vyāsaḥ
kavīnām uśanā kaviḥ||
--
Meaning :
Among the vṛṣṇī (the clan / lineage of kṛṣṇa), I AM vāsudeva (kṛṣṇa), among pāṇḍav - dhanañjaya (arjuna), among sages I AM vyās (vedavyāsa) I AM, and of seer-poets (kavi) - uśanā / (śukrācārya / daitya-guru).
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vṛṣṇīnāṃ vāsudevo:'smi
pāṇḍavānāṃ dhanañjayaḥ |
munīnāmapyahaṃ vyāsaḥ
kavīnāmuśanā kaviḥ |
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(vṛṣṇīnām vāsudevaḥ asmi
pāṇḍavānām dhanañjayaḥ |
munīnām api aham vyāsaḥ
kavīnām uśanā kaviḥ||
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Meaning :
Among the vṛṣṇī (the clan / lineage of kṛṣṇa), I AM vāsudeva (kṛṣṇa), among pāṇḍav - dhanañjaya (arjuna), among sages I AM vyās (vedavyāsa) I AM, and of seer-poets (kavi) - uśanā / (śukrācārya / daitya-guru).
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