क्या मृत्यु अटल सत्य है?
--
यू-ट्यूब के एक वीडियो में वे महात्मा गरुड़ पुराण और अन्य ग्रन्थों के संदर्भ में विस्तार से यह विवेचना कर रहे थे कि मनुष्य की मृत्यु हो जाने के बाद वह किस लोक में जाता है, वहाँ कितने समय तक रहता है, और किस गति को प्राप्त होता है।
यह सब अत्यन्त रोचक और ज्ञानवर्धक था, इसमें संदेह नहीं, किन्तु मन में प्रश्न आया कि गीता में इस बारे में क्या कहा गया है!
श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा अध्याय श्लोक 1 से 27 तक इस बारे में यह वर्णन किया गया है -
सञ्जय उवाच -
तं तथा कृपया आविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन।। -1
श्रीभगवानुवाच -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।। -2
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।। - 3
अर्जुन उवाच-
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।। - 4
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुमपीह लोके।
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्।। - 5
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः
यानेव हत्वा न जिजीविषाम-
स्ते अवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः।। - 6
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्ते अहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।। - 7
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धम्
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।। - 8
सञ्जय उवाच -
एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।। - 9
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः।। - 10
श्रीभगवानुवाच -
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।। 11
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।। - 12
देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।। - 13
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्ण सुखदुःखदा।
आगमापायिनो अनित्या तांस्तितिक्षस्व भारत।। - 14
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सः अमृतत्वाय कल्पते।। - 15
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः
उभयोरपि दृष्टो-अन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।। - 16
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति।। - 17
अन्तवन्त इमे देहाः नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनो अप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।। - 18
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।। - 19
न जायते म्रियते वा कदाचिन्-
नायं भूत्वा-(अ)भविता वा भूयः।
अजो नित्यो शाश्वतो अयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। - 20
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।। - 21
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरो-अपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्ययानि संयाति नवानि देही।। - 22
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।। - 23
अच्छेद्यो अयं अदाह्यो अयं अक्लेद्यो अशोष्य एव च।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलो अयं सनातनः।। - 25
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्।
तथापि त्वं महाबाहो नैैव शोचितुमर्हसि।। - 26
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्य-अर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।। - 27
इससे स्पष्ट हो जाता है कि मृत्यु केवल मन में उठी एक कल्पना या विचार मात्र है, जिसका अस्तित्व घटना की तरह भी यदि स्वीकार किया जाए तो यह प्रश्न उठता है कि मृत्यु (नामक यह घटना) किसे प्रभावित करती है?
जिस अविनाशी आत्मा का वर्णन ऊपर किया गया है, न तो उसकी और न ही उस "देही" / चेतन तत्त्व / चेतना / मन या चित्त की ही मृत्यु हो सकती है जो पुरानी देह को पुराने और जीर्ण वस्त्रों की तरह त्यागकर नये और दूसरे शरीर को नये वस्त्रों की तरह धारण कर लेता है।
तात्पर्य यह हुआ कि यदि मृत्यु केवल कल्पना या विचार भर है जो दूसरी कल्पनाओं और विचारों की तरह आता और जाता रहता है, और इसलिए उसकी सत्यता तक यदि संदिग्ध है, तो वह "अटल" सत्य कैसे हो सकता है? क्या यह बहुत बड़ा आश्चर्य ही नहीं है कि इस झूठे तथ्य की परीक्षा किए बिना ही हर कोई ही इसे ब्रह्मवाक्य की तरह सिर-माथा झुकाकर स्वीकार कर लेता है!
इस तरह जाने अनजाने ही आत्मा के तत्त्व की उपेक्षा कर दी जाती है और लोक-परलोक, जन्म-पुनर्जन्म की उन रोचक और अन्तहीन कल्पनाओं में मन भटकता ही चला जाता है, और संशय फिर भी बने ही रहते हैं!!
***