कौन है युधिष्ठिर ?
अध्याय ४
श्रीभगवानुवाच --
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।१।।
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।२।।
स एव मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।।
भक्तोऽसि सखा चेति रहस्यमेतदनुत्तमम्।।३।।
अर्जुन उवाच --
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति।।४।।
श्रीभगवानुवाच --
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।५।।
इस युद्ध में अर्जुन मोहित बुद्धि के वश में हो, अनिश्चय से ग्रस्त हो गया अर्थात् वह अस्थिरमति हो गया। जबकि भगवान् श्रीकृष्ण की बुद्धि अर्थात् मति सदा की भाँति एक जैसी स्थिर थी। जिसकी बुद्धि युद्ध के समय स्थिर होती है उसे युधिष्ठिर कहा जाता है-
युधि स्थिरा मतिः यस्य स युधिष्ठिरो उच्यते।।
इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा किंकर्तव्यविमूढ अस्थिरमति अर्जुन को दिया गया, न कि उसके बड़े भाई युधिष्ठिर को।
युधिष्ठिर को इसीलिए धर्मराज भी कहा जाता है।
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