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Monday, June 27, 2022

जैसा संग, वैसा रंग

आज का व्हॉट्स ऐप् सन्देश

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"जैसा संग, वैसा रंग!"

मैंने रिप्लाय किया :

ध्यायतो विषयान्पुन्सो सङ्गस्तेषूपजायते।।

सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात् क्रोधोऽभिजायते।।६२।।

क्रोधात्भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।।६३।।

(अध्याय २)

ध्यान निर्गुण है, काम रजोगुण है, क्रोध तमोगुण है। 

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।।

मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।।१४।।

(अध्याय ७)

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Sunday, April 17, 2022

सम्मोह, स्मृति और ध्यान

अध्याय २

ध्यायतो विषयान्पुन्सः संगस्तेषूपजायते।।

सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।।६२।।

क्रोधात्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।६३।।

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अध्याय ६

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्लमस्थिरम्।। 

ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्।।

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अध्याय ७

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वंद्वमोहेन भारत।। 

सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप।।२७।।

अध्याय १८

श्रीभगवानुवाच --

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा।। 

कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय।। ७२।।

अर्जुन उवाच --

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा  त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।।

स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव।।७३।।

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जब पुरुष / मनुष्य जिस भी किसी विषय का ध्यान करता है, या जब किसी विषय पर उसका ध्यान होता है तो उसका चित्त उस विषय से जुड़ जाता है। इस प्रकार किसी भी विषय से जुड़ते ही उस विषय से संबंधित कामना जन्म लेती है और उस कामना के पूर्ण न होने से, या कामना से विपरीत, अनचाहा अनुभव प्राप्त होने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध के परिणाम से सम्मोह चित्त को अभिभूत कर लेता है। सम्मोह के प्रभाव से स्मृति का भ्रंश होकर स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति के भ्रष्ट होने का तात्पर्य है, विभिन्न स्थितियों, वस्तुओं आदि को उनके वास्तविक स्वरूप से न देखकर अन्य किसी और ही कल्पना को विषय पर आरोपित कर दिया जाता है। तब मनुष्य की बुद्धि में भी विकार उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार बुद्धि के नष्ट हो जाने से मनुष्य भी नष्ट हो जाता है। 

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चञ्चल मन जहाँ जहाँ भटकता हो, वहाँ वहाँ से उसे पुनः पुनः लौटकर अपनी आत्मा के ही वश में लाया जाना आवश्यक है, (ताकि वह विषयों से संलग्न ही न हो।)

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हे परन्तप! मनुष्य-मात्र में, जन्मजात ही (सुख-प्राप्ति की) इच्छा और (दुःख प्राप्त न हो, या दुःख से भयरूपी) द्वेष की भावना  भावना विद्यमान होती है। और उन दोनों के बीच द्वन्द्व-रूपी मोह होने से निरपवाद रूप से प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही संभ्रम-युक्त मोह से ग्रस्त होता है।

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भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा --

हे अर्जुन! मैंने तुमसे जो कुछ भी कहा, क्या एकाग्र-चित्त होकर तुमने उसका श्रवण किया? क्या तुम्हारा अज्ञान और संशय पूरी तरह से नष्ट हुआ?

अर्जुन ने कहा --

हे अच्युत! तुम्हारी कृपा के प्रसाद से मेरा मोह नष्ट हो गया और मेरी स्मृति भी दोषरहित होकर पुनः मुझे प्राप्त हो गयी। अब मेरे हृदय से सन्देह भी दूर हो गया है, इसलिए अब मैं वही करूँगा, जैसा करने के लिए तुमने मुझसे कहा है।

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Tuesday, May 13, 2014

आज का श्लोक, ’संमोहात्’ / ’saṃmohāt’, ’संमोहः’ / ’saṃmohaḥ’,

आज का श्लोक,
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’संमोहात्’ /  ’saṃmohāt’
’संमोहः’ /  ’saṃmohaḥ’ 
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’संमोहात्’ /  ’saṃmohāt’ - संमोह  / विभ्रम / पूर्वाग्रह से,
’संमोहः’ /  ’saṃmohaḥ’ - संमोह, / विभ्रम / पूर्वाग्रह,
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अध्याय  2, श्लोक 63,
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क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥
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क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्-स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृति-भ्रंशात्-बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्-प्रणश्यति ॥
--
भावार्थ :
क्रोध से चित्त अत्यन्त मोहाविष्ट हो जाता है, चित्त के  अत्यन्त मूढता से आविष्ट होने पर स्मृति विभ्रमित हो जाती है, स्मृति के विभ्रमित हो जाने पर बुद्धि अर्थात् विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाती है, और विवेक-बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य विनष्ट हो जाता है ।
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’संमोहात्’ /  ’saṃmohāt’ - from delusion, rage, fit,
’संमोहः’ /  ’saṃmohaḥ’ - delusion,

Chapter 2, shloka 63,

krodhādbhavati sammohaḥ 
sammohātsmṛtivibhramaḥ |
smṛtibhraṃśādbuddhināśo
buddhināśātpraṇaśyati ||
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krodhāt bhavati sammohaḥ
sammohāt-smṛtivibhramaḥ |
smṛti-bhraṃśāt-buddhināśaḥ
buddhināśāt-praṇaśyati ||
--
 
Meaning :
Anger causes the delusion, and delusion results in the confusion of memory. Confusion in memory further causes loss of capacity to distinguish between the right and the wrong, the truth and the false, and once this capacity is lost, one is but ruined.
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Monday, March 3, 2014

आज का श्लोक, ’स्मृतिभ्रंशात्’ / 'smRtibhraMshAt'

आज का श्लोक, ’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'
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’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'  -  स्मृति में व्यवधान और भ्रम के कारण
अध्याय  2, श्लोक 63,
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क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥
--
क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्-स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृति-भ्रंशात्-बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्-प्रणश्यति ॥
--
भावार्थ :
क्रोध से चित्त अत्यन्त मोहाविष्ट हो जाता है, चित्त के  अत्यन्त मूढता से आविष्ट होने पर स्मृति विभ्रमित हो जाती है, स्मृति के विभ्रमित हो जाने पर बुद्धि अर्थात् विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाती है, और विवेक-बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य विनष्ट हो जाता है ।
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’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'  - owing to the disturbance / confusion in the memory.
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Chapter 2, shloka 63,
krodhAdbhavati sammohaH
sammohAtsmRti-vibhramaH
smRtibhraMshAdbuddhinAsho
buddhinAshAtpraNashyati ||
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 Meaning :
Anger causes the delusion, and delusion results in the confusion of memory. Confusion in memory further causes loss of capacity to distinguish between the right and the wrong, the truth and the false, and once this capacity is lost, one is totally ruined.
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आज का श्लोक, ’स्मृतिविभ्रमः’ / 'smRtivibhramaH'

आज का श्लोक ’स्मृतिविभ्रमः’ / 'smRtivibhramaH'  
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’स्मृतिविभ्रमः’ / 'smRtivibhramaH' - स्मृति में व्यवधान और भ्रम
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अध्याय  2, श्लोक 63,
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क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥
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क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्-स्मृतिविभ्रमः
स्मृति-भ्रंशात्-बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्-प्रणश्यति ॥
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भावार्थ :
क्रोध से चित्त अत्यन्त मोहाविष्ट हो जाता है, चित्त के  अत्यन्त मूढता से आविष्ट होने पर स्मृति विभ्रमित हो जाती है, स्मृति के विभ्रमित हो जाने पर बुद्धि अर्थात् विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाती है, और विवेक-बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य विनष्ट हो जाता है ।
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’स्मृतिविभ्रमः’ / 'smRtivibhramaH'  - disturbance / confusion in the memory.
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Chapter 2, shloka 63,
krodhAdbhavati sammohaH
sammohAt-smRti-vibhramaH
smRtibhraMshAdbuddhinAsho
buddhinAshAtpraNashyati ||
--
Meaning :
Anger causes the delusion, and delusion results in the confusion of memory. Confusion in memory further causes loss of capacity to distinguish between the right and the wrong, the truth and the false, and once this capacity is lost, one is totally ruined.
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