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Friday, July 30, 2021

संयम

पातञ्जल योग-सूत्रों में वर्णित संयम 

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श्रीमदभगवद्गीता में 

"संयम" 

शब्द का प्रयोग क्रमशः इस प्रकार से है :

अध्याय २

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।

वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।६१।।

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। 

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।६९।।

अध्याय ३

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्। 

इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।६।।

अध्याय ४

श्रोत्रादीनिन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति। 

शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति।। २६

अध्याय ६

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः। 

मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।। १४

अध्याय ८

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च। 

मूर्ध्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्।।१२।।

अध्याय १०

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। 

पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।२९।।

पातञ्जल योग-दर्शन के चार अध्यायों में से समाधिपाद नामक पहले अध्याय में समाधि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

दूसरे अध्याय साधनपाद में समाधि की प्रक्रिया में जिन साधनों की सहायता लेना आवश्यक है, उन साधनों का वर्णन विस्तार से किया गया है। 

उन साधनों का ठीक से प्रयोग करने पर चित्त का रूपान्तरण जिस प्रकार से हो जाता है, और आत्मा के स्वरूप को जानकर वह जिस कैवल्य में दृढतापूर्वक अधिष्ठित हो जाता है,  उस कैवल्य-मुक्ति का वर्णन किया गया है। 

विभूतिपाद के प्रथम तीन सूत्र क्रमशः इस प्रकार से हैं :

देशबन्धश्चित्तस्य धारणा।।१।।

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।।२।।

तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।।३।।

उपरोक्त सूत्र में समाधिपाद के सूत्र :

स्मृतिपरिशुद्धौ स्वरूपशून्येवार्थमात्रनिर्भासा निर्वितर्का ।।४३।।

का संदर्भ 'स्वरूपशून्यमिव' के तुल्य और समानार्थी भी है।

इस प्रकार गीता में प्रयुक्त 'समाधि' तथा 'ध्यान', 'संयम' की सिद्धि में सहायक हैं और 'धारणा', 'ध्यान' तथा 'समाधि' का सामान्य और विशेष अर्थ 'संयम' के संदर्भ में दृष्टव्य है ।

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Monday, August 26, 2019

अहम् / अहं ... 6 ...

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अहम् / अहं 10/20, 10/21, 10/23, 10/24, 10/25, 10/28, 10/29,
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Saturday, August 24, 2019

अस्मि, ... continued ...

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अस्मि 10/21, 10/22, 10/23, 10/24, 10/25, 10/28, 10/29, 10/30,
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Wednesday, August 14, 2019

अर्यमा, अर्हति, अर्हसि

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अर्यमा 10/29,
अर्हति 2/17,
अर्हसि 2/25, 2/26, 2/27, 2/30, 2/31, 
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Sunday, August 4, 2019

अनन्तम्, अनन्तः, अनन्ताः

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अनन्तम् 11/11, 11/47,
अनन्तः 10/29,
अनन्ताः 2/41,
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Saturday, September 6, 2014

आज का श्लोक, ’वरुणः’ / ’varuṇaḥ’

आज का श्लोक,  ’वरुणः’ / ’varuṇaḥ’  
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’वरुणः’ / ’varuṇaḥ’ - वरुण (वैदिक देवता),

अध्याय 10, श्लोक 29,

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः  संयमतामहम् ॥
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(अनन्तः च अस्मि नागानाम् वरुणः यादसाम् अहम् ।
पितॄणाम् अर्यमा च अस्मि  यमः संयमताम् अहम् ॥)
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भावार्थ :
नागों में मैं शेषनाग, तथा जलचरों का स्वामी वरुण मैं हूँ, पितरों में अर्यमा (नामक पितर) मैं हूँ, और शासन करनेवालों में मैं यमराज हूँ ।
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अध्याय 11, श्लोक 39,

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः
पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
--
(वायुः यमः अग्निः वरुणः शशाङ्कः
प्रजापतिः त्वम् प्रपितामहः च ।
नमो नमः ते अस्तु सहस्रकृत्वः
पुनः च भूयः अपि नमः ते ॥)
--
भावार्थ :
आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजा के स्वामी (ब्रह्मा) तथा ब्रह्मा के भी पिता हैं । आपके लिए पुनः पुनः नमस्कार, सहस्रशः नमस्कार, पुनः बारम्बार प्रणाम !
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’वरुणः’ / ’varuṇaḥ’  - Lord varuṇa, of the aquatic creatures,

Chapter 10, shloka 29,

anantaścāsmi nāgānāṃ
varuṇo yādasāmaham |
pitr̥̄ṇāmaryamā cāsmi
yamaḥ  saṃyamatāmaham ||
--
(anantaḥ ca asmi nāgānām
varuṇaḥ yādasām aham |
pitr̥̄ṇām aryamā ca asmi
yamaḥ saṃyamatām aham ||)
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Meaning :
Among nāga (serpents with hoods), I AM The One named ananta, And Among the aquatic creatures, I AM their Lord varuṇa. Among manes (departed souls) I AM aryamā, and among the rulers, I AM yama, (The Death).
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Chapter 11, śloka 39,

vāyuryamo:'gnirvaruṇaḥ śaśāṅkaḥ
prajāpatistvaṃ prapitāmahaśca |
namo namaste:'stu sahasrakṛtvaḥ
punaśca bhūyo:'pi namo namaste ||
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(vāyuḥ yamaḥ agniḥ varuṇaḥ śaśāṅkaḥ
prajāpatiḥ tvam prapitāmahaḥ ca
namo namaḥ te astu sahasrakṛtvaḥ
punaḥ ca bhūyaḥ api namaḥ te ||
--
Meaning :
You are  The Lord in the form of Air (vāyu), The Lord of birth, life and death (yama), The Lord in the form of Fire (agni), and also in the form of waters and oceans (varuṇa), You are The The Lord of the Creation (prajāpati, brahmā), and also The causeless cause The Creator, The Father of brahmā. Prostrations to You a thousand times, again and again.
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Sunday, May 11, 2014

आज का श्लोक, ’संयमताम्’ / ’saṃyamatām’,

आज का श्लोक,  ’संयमताम्’ /  ’saṃyamatām’
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’संयमताम्’ /  ’saṃyamatām’ -शासन करनेवालों में,

अध्याय 10, श्लोक 29,

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥
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(अनन्तः च अस्मि नागानाम् वरुणो यादसाम् अहम् ।
पितॄणाम् अर्यमा च अस्मि यमः संयमताम् अहम् ॥)
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भावार्थ :
और अनन्त नामक नाग, नागों में हूँ, समुद्रों में वरुण मैं, और पितरों में अर्यमा हूँ, (इसी प्रकार से) संयम / शासन करनेवालों में यमराज मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
यहाँ उपरोक्त सभी ’देवता’ यहाँ वर्णित उनके अपने ’लोकों’ के अधिष्ठाता हैं ।
अगः / अगं = जो  गतिरहित है । न+ अगः = सतत् गतिशील अर्थात् प्राण । इसे ही बल के अर्थ में हाथी के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है । इसलिए हाथी को 'नाग' कहा जाता है ।
’नगज:’ के क्रमशः दो अर्थ हैं  1. जो पर्वत से पैदा हुआ हो, 2. जो हाथी न हो । (नरो वा कुञ्जरो वा?)
ब्रह्मा ’विधि’ और विधाता हैं, यमराज ’विधान’ हैं ।
(ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवतु अर्यमा । ...यजुर्वेदीय शान्तिपाठः)

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’संयमताम्’ /  ’saṃyamatām’ - Among the Rulers / Administrators.

Chapter 10, shloka 29,

anantaścāsmi nāgānāṃ
varuṇo yādasāmaham |
pitr̥̄ṇāmaryamā cāsmi
yamaḥ saṃyamatāmaham ||
--
(anantaḥ ca asmi nāgānām
varuṇo yādasām aham |
pitr̥̄ṇām aryamā ca asmi
yamaḥ saṃyamatām aham ||)
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Meaning :
Among the snakes and serpents (things of the moving kind) 'ananta' I AM, Among the water-bodies, 'varuṇa', I AM. Among the departed souls, I Am aryamā. And The Lord of Death among the Administrators.
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(om̐ śaṃ no mitraḥ śaṃ varuṇaḥ śaṃ no bhavatu aryamā | ...yajurvedīya śāntipāṭhaḥ)

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