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Wednesday, November 2, 2022

शाङ्करभाष्य से उद्धृत

अध्याय ९,

श्लोक २५, २६, २७,

इस अध्याय के श्लोक २५ को शुद्ध रूप में टाइपसेट करने की सुविधा न होने से उपरोक्त की पिक्चर-फ़ाइल पोस्ट कर रहा हूँ। 

अध्याय १०,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।२३।।

(श्लोक २३),

अध्याय १७,

त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।।

सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु।।२।।

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।।

श्रद्धामयोऽयं पुरुषो ये यच्छ्रद्धः स एव सः।।३।।

यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।।

प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।४।।

(श्लोक २, ३, ४, ५),

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Tuesday, October 26, 2021

सोमः भूत्वा रसात्मकः ।।

अहं वैश्वानरो भूत्वा

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रुद्र ही सोम होकर पृथ्वी में प्रविष्ट होता है, जहाँ वह वनस्पतियों और औषधियों को रसात्मक होकर पुष्ट करता है, वहीं जीवों में वैश्वानर होकर जीवों के द्वारा सेवन किए जानेवाले अलग अलग चार प्रकार के अन्न को पचाने का कार्य भी करता है। 

इस प्रकार एकमेवाद्वितीय परमेश्वर परब्रह्म रुद्र, वैश्वानर, सोम आदि विविध रूप लेकर जगत की सृष्टि, परिपालन और संहार करता है। 

जहाँ एक ओर उस एकमेव ईश्वर, परब्रह्म परमात्मा को भगवान् श्रीकृष्ण ने उत्तम पुरुष एकवचन 'अहं' पद के प्रयोग के द्वारा  श्रीमद्भगवद्गीता में व्यक्त किया है, वहीं भगवान् रुद्र ने भी इसी प्रकार उत्तम पुरुष एकवचन के द्वारा ही उसका / अपने तत्व का वर्णन शिव-अथर्वशीर्ष में किया है ।

वस्तुतः तो शिव-अथर्वशीर्ष के द्वितीय मंत्र में देवतागण रुद्र की स्तुति करते हुए कहते हैं :

यो वै रुद्रः स भगवान् यच्च कृष्णं तस्मै वै नमो नमः ।।९।।

यद्यपि यहाँ "कृष्ण" शब्द वर्ण के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, किन्तु गीता में ही अध्याय १० में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा किया गया यह उल्लेख भी दृष्टव्य है :

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ।।२३।।

काल-क्रम को आधार माने तो श्रीमद्भगवद्गीता की रचना यद्यपि अथर्वशीर्ष के बाद हुई है, किन्तु वेद तथा पुराण आदि अपौरुषेय होने से उनमें व्यक्त किए गए सत्य काल से प्रभावित नहीं होते। 

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जैसा पहले कहा गया है, 'सोम' जहाँ एक ओर रुद्र का ही पर्याय है, वहीं एक रोचक कथा से यह भी विदित होता है कि क्यों इसे 'देवताओं' के 'पेय' के रूप में जाना जाने लगा। 

जब भगवान् श्रीराम ने रावण का वध कर दिया तब देवता बहुत प्रसन्न हुए और इन्द्र ने भगवान् श्रीराम की स्तुति करते हुए उनसे निवेदन किया कि देवता उनके प्रति अपना अनुग्रह कैसे प्रकट कर सकते हैं? 

तब भगवान् श्रीराम ने इन्द्र से कहा कि वह इस युद्ध में मारे गए सभी वानरों, ऋक्षों आदि पर अमृत की वर्षा कर उन्हें फिर से जीवित कर दे। तब इन्द्र ने ऐसा ही किया । तब अमृत की कुछ बून्दें वहाँ की भूमि पर इधर-उधर बिखर गईं, जिनसे अमृता या सोमवल्ली की उत्पत्ति हुई। 

इसे ही आयुर्वेद में गुडूची कहा जाता है, और इसके नाम से एक औषधिवर्ग ही है, जिसे "गुडूच्यादिवर्ग" कहा जाता है। 

चूँकि इस औषधि के रस को अमृततुल्य माना जाता है इसलिए भी देवताओं के अमृत-पान का संबंध इससे जोड़कर यह कहा जाता है कि देवता किसी विशेष द्रव्य / पेय का पान करते हैं।

किन्तु जैसा पहले कहा गया, उससे यही स्पष्ट है कि "सोम" कोई पेय नहीं है ।

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Monday, August 26, 2019

अहम् / अहं ... 6 ...

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
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अहम् / अहं 10/20, 10/21, 10/23, 10/24, 10/25, 10/28, 10/29,
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Saturday, August 24, 2019

अस्मि, ... continued ...

श्रीमद्भगवद्गीता
शब्दानुक्रम -Index 
--
अस्मि 10/21, 10/22, 10/23, 10/24, 10/25, 10/28, 10/29, 10/30,
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Thursday, September 11, 2014

आज का श्लोक, ’रुद्राणाम्’ / ’rudrāṇām’

आज का श्लोक, ’रुद्राणाम्’ / ’rudrāṇām’ 
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’रुद्राणाम्’ / ’rudrāṇām’ - 11 रुद्रों में,

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
--
(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
--
भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
--

’रुद्राणाम्’ / ’rudrāṇām’ - among 11 rudra-s,

Chapter 10, śloka 23,

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi
meruḥ śikhariṇāmaham ||
--
(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi
meruḥ śikhariṇām aham |)
--
Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealths among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits.
--
Note. :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstrous humans with great strength and full of desires and vigour.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.
--


Friday, September 5, 2014

आज का श्लोक, ’वसूनाम्’ / ’vasūnām’

आज का श्लोक, ’वसूनाम्’ / ’vasūnām’
_____________________________

’वसूनाम्’ / ’vasūnām’ - (8) वसुओं में *

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
--
(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
--
भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
--
टिप्पणी :
इस अध्याय में परमात्मा की उन विभूतियों का वर्णन है, जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर / जानकर परमात्मा की महिमा का यत्किञ्चित् अनुमान किया जा सकता है ।
2. : (8) वसु
आपःधरो ध्रुवश्च सोमश्च अहश्चैवानिलोऽनलः ।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोष्टविति स्मृताः ॥
अर्थ :
जलाशय, ध्रुव तारा, सोम (चन्द्र), दिन, वायु तथा अग्नि, प्रत्यूष वेला तथा प्रभास वेला (सूर्योदय के तुरन्त पहले का और तुरन्त बाद का समय) ये आठ ’वसु’ *कहे जाते हैं ।
--
’वसूनाम्’ / ’vasūnām’ - among (8) vasu,*

Chapter 10, śloka 23, 

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi 
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi 
meruḥ śikhariṇāmaham ||
--
(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi 
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi 
meruḥ śikhariṇām aham |) 
--
Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealths among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits. 
--
*Note :
आपःधरो ध्रुवश्च सोमश्च अहश्चैवानिलोऽनलः ।
प्रत्यूषश्च प्रभासश्च वसवोष्टविति स्मृताः ॥
āpaḥdharo dhruvaśca somaśca ahaścaivānilo:'nalaḥ |
pratyūṣaśca prabhāsaśca vasavoṣṭaviti smṛtāḥ ||
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The water-reservoir, The Polar-star, The Moon,  the day-time, Air and Fire, the dawn (time just before the sun-rise) and the time when the sun has just come-up, are termed as 8 vasu, divine / celestial entities that sustain the nature and the whole life.
--
2. :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstruous humans with great strength and full of desires and vigour.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.  
--

Saturday, August 30, 2014

आज का श्लोक, ’वित्तेशः’ / ’vitteśaḥ’

आज का श्लोक, ’वित्तेशः’ / ’vitteśaḥ’
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’वित्तेशः’ / ’vitteśaḥ’ - कुबेर, (कुब् / कुभ् आच्छादने - सम्पत्ति का संग्रह करनेवाला, प्रचुर धन का स्वामी, यक्षराज)

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
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(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
--
भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
--
टिप्पणी :
इस अध्याय में परमात्मा की उन विभूतियों का वर्णन है, जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर / जानकर परमात्मा की महिमा का यत्किञ्चित् अनुमान किया जा सकता है ।
--
’वित्तेशः’ / ’vitteśaḥ’ - kubera, (yakṣarāja, the lord of wealth, yakṣa-s)

Chapter 10, śloka 23,

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi
meruḥ śikhariṇāmaham ||
--
(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi
meruḥ śikhariṇām aham |)
--
Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealths among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits.
--
Notes :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstruous humans with great strength and full of desires and vigour.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.
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दिक्- नयति, येन नीयते इति स दिग्नीतिः dik-nayati ,dik-nīyate yena iti sa dignītiḥ 
A dignity is one who spreads in all directions, ...
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Thursday, July 31, 2014

आज का श्लोक, ’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’

आज का श्लोक, ’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’
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’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’ - शंकर, शिव, महादेव,

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
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(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
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भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
इस अध्याय में परमात्मा की उन विभूतियों का वर्णन है, जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर / जानकर परमात्मा की महिमा का यत्किञ्चित् अनुमान किया जा सकता है ।

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’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’ - śaṃkara, śiva, mahādeva,

Chapter 10, śloka 23,

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi
meruḥ śikhariṇāmaham ||
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(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi
meruḥ śikhariṇām aham |)
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Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealths among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits.
--
Notes :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstrous humans with great strength and full of desires and vigor.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.
(दिक्-नीयते येन ( इति ) स दिग्नीतिः dik-nīyate yena (iti) sa dignītiḥ -one who takes to a direction, is vasu)
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Tuesday, July 29, 2014

आज का श्लोक, ’शिखरिणाम्’ / ’śikhariṇām’

आज का श्लोक,
’शिखरिणाम्’ / ’śikhariṇām’
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’शिखरिणाम्’ / ’śikhariṇām’- शिखरवाले पर्वतों में,

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
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(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
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भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
इस अध्याय में परमात्मा की उन विभूतियों का वर्णन है, जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर / जानकर परमात्मा की महिमा का यत्किञ्चित् अनुमान किया जा सकता है ।
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’शिखरिणाम्’ / ’śikhariṇām’ - the mountains with peaks / summits.

Chapter 10, śloka 23,

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi
meruḥ śikhariṇāmaham ||
--
(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi
meruḥ śikhariṇām aham |)
--
Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealth among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits.
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Notes :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstrous humans with great strength and full of desires and vigor.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.
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