Tuesday, October 26, 2021

सोमः भूत्वा रसात्मकः ।।

अहं वैश्वानरो भूत्वा

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रुद्र ही सोम होकर पृथ्वी में प्रविष्ट होता है, जहाँ वह वनस्पतियों और औषधियों को रसात्मक होकर पुष्ट करता है, वहीं जीवों में वैश्वानर होकर जीवों के द्वारा सेवन किए जानेवाले अलग अलग चार प्रकार के अन्न को पचाने का कार्य भी करता है। 

इस प्रकार एकमेवाद्वितीय परमेश्वर परब्रह्म रुद्र, वैश्वानर, सोम आदि विविध रूप लेकर जगत की सृष्टि, परिपालन और संहार करता है। 

जहाँ एक ओर उस एकमेव ईश्वर, परब्रह्म परमात्मा को भगवान् श्रीकृष्ण ने उत्तम पुरुष एकवचन 'अहं' पद के प्रयोग के द्वारा  श्रीमद्भगवद्गीता में व्यक्त किया है, वहीं भगवान् रुद्र ने भी इसी प्रकार उत्तम पुरुष एकवचन के द्वारा ही उसका / अपने तत्व का वर्णन शिव-अथर्वशीर्ष में किया है ।

वस्तुतः तो शिव-अथर्वशीर्ष के द्वितीय मंत्र में देवतागण रुद्र की स्तुति करते हुए कहते हैं :

यो वै रुद्रः स भगवान् यच्च कृष्णं तस्मै वै नमो नमः ।।९।।

यद्यपि यहाँ "कृष्ण" शब्द वर्ण के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, किन्तु गीता में ही अध्याय १० में भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा किया गया यह उल्लेख भी दृष्टव्य है :

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ।।२३।।

काल-क्रम को आधार माने तो श्रीमद्भगवद्गीता की रचना यद्यपि अथर्वशीर्ष के बाद हुई है, किन्तु वेद तथा पुराण आदि अपौरुषेय होने से उनमें व्यक्त किए गए सत्य काल से प्रभावित नहीं होते। 

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जैसा पहले कहा गया है, 'सोम' जहाँ एक ओर रुद्र का ही पर्याय है, वहीं एक रोचक कथा से यह भी विदित होता है कि क्यों इसे 'देवताओं' के 'पेय' के रूप में जाना जाने लगा। 

जब भगवान् श्रीराम ने रावण का वध कर दिया तब देवता बहुत प्रसन्न हुए और इन्द्र ने भगवान् श्रीराम की स्तुति करते हुए उनसे निवेदन किया कि देवता उनके प्रति अपना अनुग्रह कैसे प्रकट कर सकते हैं? 

तब भगवान् श्रीराम ने इन्द्र से कहा कि वह इस युद्ध में मारे गए सभी वानरों, ऋक्षों आदि पर अमृत की वर्षा कर उन्हें फिर से जीवित कर दे। तब इन्द्र ने ऐसा ही किया । तब अमृत की कुछ बून्दें वहाँ की भूमि पर इधर-उधर बिखर गईं, जिनसे अमृता या सोमवल्ली की उत्पत्ति हुई। 

इसे ही आयुर्वेद में गुडूची कहा जाता है, और इसके नाम से एक औषधिवर्ग ही है, जिसे "गुडूच्यादिवर्ग" कहा जाता है। 

चूँकि इस औषधि के रस को अमृततुल्य माना जाता है इसलिए भी देवताओं के अमृत-पान का संबंध इससे जोड़कर यह कहा जाता है कि देवता किसी विशेष द्रव्य / पेय का पान करते हैं।

किन्तु जैसा पहले कहा गया, उससे यही स्पष्ट है कि "सोम" कोई पेय नहीं है ।

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