पुष्णामि / पचामि
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"सोमः" शीर्षक से लिखित एक पुस्तक का वीडियो, यू-ट्यूब पर देखा। मेजर जनरल जी. डी. बख्शी द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को देखने का सौभाग्य तो नहीं मिला, अतः उस बारे में मेरे द्वारा कुछ लिखने का प्रश्न ही नहीं उठता। बहरहाल, वीडियो पर एक टिप्पणी लिखी, जिसमें यह उल्लेख किया, कि गीता में 'सोम' के विषय में क्या कहा गया है।
गीता अध्याय १५ के निम्न दो श्लोकों में क्रमशः सोम तथा अग्नि का वर्णन इस प्रकार से है :
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ।।१३।।
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणायामसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ।।१४।।
अध्याय ९ के निम्न श्लोक में 'सोमपाः' का प्रयोग भी दृष्टव्य है :
त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा
यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते ।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-
मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ।।२०।।
इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने उत्तम पुरुष एकवचन क्रियापदों 'पुष्णामि' तथा 'पचामि' के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि वे ही सोम का रूप ग्रहण कर समस्त औषधियों को पुष्टि प्रदान करते हैं, वहीं वे ही वैश्वानर अग्नि के रूप में अन्न के चार प्रकार के पाचन की क्रिया को संपन्न करते हैं ।
उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि इस प्रकार से जिस 'सोम' को आज के कुछ विद्वान् कोई रसायन या पदार्थ-विशेष मान बैठे हैं, और उसे जड़ी-बूटियों आदि में खोजने की चेष्टा करते हुए उसके विषय में भाँति भाँति के अनुमान लगाते हैं वह कितना त्रुटिपूर्ण है । दूसरी ओर, आयुर्वेद में गुडूची नामक वनस्पति का एक नाम 'सोम' या 'अमृतवल्ली' पाया जाता है ।
इस वनस्पति का रस प्राप्त कर उसे औषधि की तरह से प्रयोग किया जाता है।
यज्ञ के द्वारा हवन किए जानेवाले द्रव्यों से वैदिक देवताओं का आवाहन किया जाता है और इस दृष्टि से सोम भी इन्द्र, अग्नि, वायु आदि की तरह देवता-विशेष है, न कि कोई वनस्पति, द्रव्य इत्यादि ।
इसकी पुष्टि शिव-अथर्वशीर्ष से भी होती है जहाँ देवता रुद्र की स्तुति करते हुए मंत्र २ में कहते हैं :
"यो वै रुद्रः स भगवान् यश्च सोमस्तस्मै वै नमो नमः।।८।।"
इससे भी यही स्पष्ट होता है कि 'सोम' के रूप में रुद्र ही यज्ञ में हवन की गई सामग्री को ग्रहण करते हैं ।
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