Saturday, September 13, 2025

13/29, Yoga-Sutras, Ishwara,

अहिंसा

समं पश्यन्हि सर्वत्रं समवस्थितमीश्वरम्। 

न हिनस्त्यात्मनाऽऽत्मानं ततो याति परां गतिम्।।२९।।

अध्याय १३ के उपरोक्त श्लोक में अहिंसा की उपरोक्त परिभाषा के अनुसार अहिंसा अपरिहार्यतः योग का वह अंग है जिसका उल्लेख महर्षि पतञ्जलि ने साधनपाद के योगसूत्र ३० में किया है -

अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः।।३०।।

अहिंसा के स्वरूप को तत्वतः समझने के लिए गीता से उद्धृत उपरोक्त अध्याय १३ के श्लोक २९ से इस योगसूत्र की तुलना के द्वारा की जा सकती है।

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