Wednesday, November 2, 2022

शाङ्करभाष्य से उद्धृत

अध्याय ९,

श्लोक २५, २६, २७,

इस अध्याय के श्लोक २५ को शुद्ध रूप में टाइपसेट करने की सुविधा न होने से उपरोक्त की पिक्चर-फ़ाइल पोस्ट कर रहा हूँ। 

अध्याय १०,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।।

वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।२३।।

(श्लोक २३),

अध्याय १७,

त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।।

सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु।।२।।

सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।।

श्रद्धामयोऽयं पुरुषो ये यच्छ्रद्धः स एव सः।।३।।

यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।।

प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।४।।

(श्लोक २, ३, ४, ५),

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