Thursday, July 31, 2014

आज का श्लोक, ’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’

आज का श्लोक, ’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’
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’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’ - शंकर, शिव, महादेव,

अध्याय 10, श्लोक 23,

रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् ।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
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(रुद्राणाम् शङ्करः च अस्मि वित्तेशः यक्षरक्षसाम् ।
वसूनाम् पावकः च अस्मि मेरुः शिखरिणाम् अहम् ।)
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भावार्थ :
(ग्यारह) रुद्रों में मैं शंकर हूँ, यक्षों एवं राक्षसों में मैं धन का स्वामी कुबेर हूँ, (आठ) वसुओं में अग्नि हूँ, तथा शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
इस अध्याय में परमात्मा की उन विभूतियों का वर्णन है, जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर / जानकर परमात्मा की महिमा का यत्किञ्चित् अनुमान किया जा सकता है ।

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’शङ्करः’ / ’śaṅkaraḥ’ - śaṃkara, śiva, mahādeva,

Chapter 10, śloka 23,

rudrāṇāṃ śaṅkaraścāsmi
vitteśo yakṣarakṣasām |
vasūnāṃ pāvakaścāsmi
meruḥ śikhariṇāmaham ||
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(rudrāṇām śaṅkaraḥ ca asmi
vitteśaḥ yakṣarakṣasām |
vasūnām pāvakaḥ ca asmi
meruḥ śikhariṇām aham |)
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Meaning :
And, among (the eleven) rudra-s, I AM śaṅkara, kubera, The Lord of wealths among the yakṣa and the rakṣa. I AM The Fire, among the (eight) vasu-s, and meru (sumeru). among the mountains with peaks and summits.
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Notes :
rudrā are the many forms of shiva / mahādeva, as described in veda and purāṇa.
yakṣa are the spiritual entities possessing occult powers.
rakṣa are the monstrous humans with great strength and full of desires and vigor.
vasu-s are the eight spiritual / celestial dignities that are Lords of, and look after eight directions.
(दिक्-नीयते येन ( इति ) स दिग्नीतिः dik-nīyate yena (iti) sa dignītiḥ -one who takes to a direction, is vasu)
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