Friday, July 25, 2014

आज का श्लोक, ’शोकम्’ / ’śokam’

आज का श्लोक, ’शोकम्’ / ’śokam’
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’शोकम्’ / ’śokam’

अध्याय 2, श्लोक 8,

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्
च्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ।
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(न हि प्रपश्यामि मम-अपनुद्यात्
यत्-शोकम्-उच्छोषणम्-इन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमौ-असपत्नम्-ऋद्धम्
राज्यम् सुराणाम्-अपि च आधिपत्यम् ॥)
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भावार्थ :
चूँकि शत्रुओं से रहित भूमि का स्वामित्व, धन-धान्य से सम्पन्न राज्य तथा देवताओं पर आधिपत्य होने पर भी  मुझे वह उपाय नहीं दिखलाई देता, जो  मेरी इन्द्रियों को सुखा देनेवाले इस शोक से मुझे छुटकारा दिला सके ।
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अध्याय 18, श्लोक 35,

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥
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(यया स्वप्नम् भयम् शोकम् विषादम् मदम् एव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥)
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भावार्थ :
जिस धृति से दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य निद्रा, भय, शोक, विषाद तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता, अर्थात् धारण किए रहता है, उस धृति (मन का सात्त्विक, राजसिक अथवा तामसिक वृत्तियों से तादात्म्य में रहने का गुण) को तामसी धृति कहा गया है ।
टिप्पणी :
श्लोक 29 में ऐसा कहा गया कि गुण के अनुसार / आधार पर बुद्धि तथा धृति भी तीन प्रकार से सात्त्विक, राजसिक तथा तामसिक होती है ।
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Chapter 2, śloka 8,

na hi prapaśyāmi mamāpanudyād
yacchokamucchoṣaṇamindriyāṇām |
avāpya bhūmāvasapatnamṛddhaṃ
rājyaṃ surāṇāmapi cādhipatyam |
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(na hi prapaśyāmi mama-apanudyāt
yat-śokam-ucchoṣaṇam-indriyāṇām |
avāpya bhūmau-asapatnam-ṛddham
rājyam surāṇām-api ca ādhipatyam ||)
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Meaning :
Because, even if I get the kingdom of this land bereft of the enemies and full of affluence, and the lordship of the heavens, I don't see a cause that would drive away my grief that is scorching my senses.
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Chapter 18, śloka 35,

yayā svapnaṃ bhayaṃ śokaṃ 
viṣādaṃ madameva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||
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(yayā svapnam bhayam śokam 
viṣādam madam eva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||)
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Meaning :
The tendency (dhṛti) of mind that does not let one of evil attitudes overcome sleep, fear, grief, misery, sorrow, and arrogance also, is known as of the  tāmasī kind.
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Note :
As already said in śloka 29 of this chapter, the intellect (buddhi) and tendency (dhṛti) is also of three kinds, namely sāttvika, rājasika and tāmasī kinds. It should be also noted that dhṛti is the attribute of the mind through which the mind gets identified with various modes (vṛtti-s) of mind, and again the modes are also of these 3 kinds i.e. sāttvika, rājasika and tāmasī.
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