आज का श्लोक, ’शाधि’ / ’śādhi’
___________________________
’शाधि’ / ’śādhi’ - शिक्षा दीजिए, ( शास् > शिक्षा देना),
अध्याय 2, श्लोक 7,
--
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥७
--
(कार्पण्य-दोष-उपहत-स्वभावः
पृच्छामि त्वाम् धर्मसम्मूढचेताः ।
यत्-श्रेयः स्यात्-निश्चितम् ब्रूहि तत्-मे
शिष्यः ते-अहम् शाधि माम् त्वाम् प्रपन्नम् ॥)
--
भावार्थ :
भावनात्मक दुर्बलता की प्रवृत्ति से अभिभूत हुआ मैं, मेरा धर्म क्या है इस बारे में संशयग्रस्त हो रहा हूँ । इसलिए आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए जो भी निश्चित ही श्रेयस्कर है उसे मुझसे कहें । मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण हूँ, मुझे शिक्षा दें ।
टिप्पणी :
व्युत्पत्ति :
’छात्र’ - जो किसी की छत्रछाया में होता है, ’शिष्य’ - जो किसी के शासन (शास् - शिक्षा देना) में होता है ।
--
’शाधि’ / ’śādhi’ - please teach (me) ! ( शास् > शासनम्, to teach,)
Chapter 2, śloka 7,
kārpaṇyadoṣopahatasvabhāvaḥ
pṛcchāmi tvāṃ dharmasammūḍhacetāḥ |
yacchreyaḥ syānniścitaṃ brūhi tanme
śiṣyaste:'haṃ śādhi māṃ tvāṃ prapannam ||7
--
(kārpaṇya-doṣa-upahata-svabhāvaḥ
pṛcchāmi tvām dharmasammūḍhacetāḥ |
yat-śreyaḥ syāt-niścitam brūhi tat-me
śiṣyaḥ te-aham śādhi mām tvām prapannam ||)
--
Meaning :
Overcome by pity and faint-heart, puzzled in the heart about what is the right path of 'dharma' for me, I am asking for your guidance, Please instruct and teach me, I am your disciple, seeking refuge in you.
--
___________________________
’शाधि’ / ’śādhi’ - शिक्षा दीजिए, ( शास् > शिक्षा देना),
अध्याय 2, श्लोक 7,
--
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥७
--
(कार्पण्य-दोष-उपहत-स्वभावः
पृच्छामि त्वाम् धर्मसम्मूढचेताः ।
यत्-श्रेयः स्यात्-निश्चितम् ब्रूहि तत्-मे
शिष्यः ते-अहम् शाधि माम् त्वाम् प्रपन्नम् ॥)
--
भावार्थ :
भावनात्मक दुर्बलता की प्रवृत्ति से अभिभूत हुआ मैं, मेरा धर्म क्या है इस बारे में संशयग्रस्त हो रहा हूँ । इसलिए आपसे पूछता हूँ कि मेरे लिए जो भी निश्चित ही श्रेयस्कर है उसे मुझसे कहें । मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण हूँ, मुझे शिक्षा दें ।
टिप्पणी :
व्युत्पत्ति :
’छात्र’ - जो किसी की छत्रछाया में होता है, ’शिष्य’ - जो किसी के शासन (शास् - शिक्षा देना) में होता है ।
--
’शाधि’ / ’śādhi’ - please teach (me) ! ( शास् > शासनम्, to teach,)
Chapter 2, śloka 7,
kārpaṇyadoṣopahatasvabhāvaḥ
pṛcchāmi tvāṃ dharmasammūḍhacetāḥ |
yacchreyaḥ syānniścitaṃ brūhi tanme
śiṣyaste:'haṃ śādhi māṃ tvāṃ prapannam ||7
--
(kārpaṇya-doṣa-upahata-svabhāvaḥ
pṛcchāmi tvām dharmasammūḍhacetāḥ |
yat-śreyaḥ syāt-niścitam brūhi tat-me
śiṣyaḥ te-aham śādhi mām tvām prapannam ||)
--
Meaning :
Overcome by pity and faint-heart, puzzled in the heart about what is the right path of 'dharma' for me, I am asking for your guidance, Please instruct and teach me, I am your disciple, seeking refuge in you.
--
No comments:
Post a Comment