Thursday, July 31, 2014

आज का श्लोक, ’शारीरम्’ / ’śārīram’

आज का श्लोक, ’शारीरम्’ / ’śārīram’
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’शारीरम्’ / ’śārīram’ - शरीर-संबंधी,

अध्याय 4, श्लोक 21,

निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ॥
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(निराशीः यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरम् केवलम् कर्म कुर्वन् न आप्नोति किल्बिषम् ॥)
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भावार्थ :
शरीर, मन तथा इन्द्रियों पर संयम करता हुआ, (भोगों की) समस्त परिग्रह को जिसने त्याग दिया है, संसार से कोई आशा न रखता हुआ, केवल शरीर के निर्वाह हेतु प्राप्त हुए कर्मों का निर्वाह करते हुए भी, पाप को नहीं प्राप्त होता ।
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अध्याय 17, श्लोक 14,

देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् ।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥
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(देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम् शौचम् आर्जवम् ।
ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरम् तप उच्यते ॥)
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भावार्थ :
देवता, ब्राह्मण, गुरुजनों और ज्ञानियों का पूजन, उन्हें सत्कार और सम्मान प्रदान करना, अन्तःकरण एवं शरीर को स्वच्छ और शुद्ध रखना, चित्त की सरलता, निश्छलता, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, इन्हें शारीर (शरीर से किए जानेवाले) तप कहा जाता है ।
टिप्पणी :
द्विज का अर्थ है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो, तात्पर्य है जिसका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ हो, अर्थात् प्रमुखतः ब्राह्मण, और गौण अर्थ में, वैदिक दीक्षा प्राप्त करनेवाला और व्रत का पालन करनेवाला कोई व्यक्ति ।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है विषय-भोगों के प्रति सुख-बुद्धि न होना ।
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’शारीरम्’ / ’śārīram’ - of body, physical,

Chapter 4, śloka 21,

nirāśīryatacittātmā tyaktasarvaparigrahaḥ |
śārīraṃ kevalaṃkarma kurvannāpnoti kilbiṣam ||
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(nirāśīḥ yatacittātmā tyaktasarvaparigrahaḥ |
śārīram kevalam karma kurvan na āpnoti kilbiṣam ||)
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Meaning :
Who, without expectations from the world, having controlled the body, mind and the senses, has given up all sense of possession over the material things, though performs various actions by the body only, does not incur sin.
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Chapter 17, śloka 14,

devadvijaguruprājñapūjanaṃ śaucamārjavam |
brahmacaryamahiṃsā ca śārīraṃ tapa ucyate ||
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(devadvijaguruprājñapūjanam śaucam ārjavam |
brahmacaryam ahiṃsā ca śārīram tapa ucyate ||)
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Meaning :
Worshiping and giving due respect to the divine entities (deva), the twice-born (dvija), The Spiritual Master and elders in other respects (guru), maintaining the purity and cleanliness of body, mind and senses, simplicity of mind, abstaining from indulgence in pleasures (brahmacaryam), and the attitude of compassion (ahiṃsā) toward all beings, these are called the austerities of the body (śārīraṃ tapa).
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