Monday, July 28, 2014

आज का श्लोक, ’शुचः’ / ’śucaḥ’

आज का श्लोक, ’शुचः’ / ’śucaḥ’
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’शुचः’ / ’śucaḥ’ -  ’मा शुचः’ > शोक मत करो,
 
अध्याय 16, श्लोक 5,

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥
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दैवी सम्पत्-विमोक्षाय निबन्धाय आसुरी मता ।
मा शुचः सम्पदम् दैवीम् अभिजातः असि पाण्डव ॥)
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भावार्थ :
इन दो प्रकार की सम्पदों में से दैवी तो मुक्ति का हेतु होती है, जबकि आसुरी मनुष्य के बन्धन का कारण होती है । हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! तुम इस विषय में शोक मत करो, व्याकुल मत होओ, क्योंकि तुमने निश्चित ही दैवी सम्पदा से संपन्न होते हुए जन्म लिया है ।
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अध्याय 18, श्लोक 66,

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
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(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरण व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
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भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन के प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
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’शुचः’ / ’śucaḥ’ - (’mā śucaḥ’) >  Grieve not,

Chapter 16, śloka 5,

daivī sampadvimokṣāya
nibandhāyāsurī matā |
śucaḥ sampadaṃ
daivīmabhijāto:'si pāṇḍava ||
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daivī sampat-vimokṣāya
nibandhāya āsurī matā |
śucaḥ sampadam daivīm
abhijātaḥ asi pāṇḍava ||)
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Meaning :
The daivī -divine attributes lead one to the liberation of the self, while the āsurī - demonic, keep one in the bondage. Grieve not O arjuna, for you are born with divine attributes.
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 Chapter 18, śloka 66,

sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
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(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇa vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
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Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
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