आज का श्लोक, ’शुचः’ / ’śucaḥ’
__________________________
’शुचः’ / ’śucaḥ’ - ’मा शुचः’ > शोक मत करो,
अध्याय 16, श्लोक 5,
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥
--
दैवी सम्पत्-विमोक्षाय निबन्धाय आसुरी मता ।
मा शुचः सम्पदम् दैवीम् अभिजातः असि पाण्डव ॥)
--
भावार्थ :
इन दो प्रकार की सम्पदों में से दैवी तो मुक्ति का हेतु होती है, जबकि आसुरी मनुष्य के बन्धन का कारण होती है । हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! तुम इस विषय में शोक मत करो, व्याकुल मत होओ, क्योंकि तुमने निश्चित ही दैवी सम्पदा से संपन्न होते हुए जन्म लिया है ।
--
अध्याय 18, श्लोक 66,
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
--
(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरण व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
--
भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन के प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
--
--
’शुचः’ / ’śucaḥ’ - (’mā śucaḥ’) > Grieve not,
Chapter 16, śloka 5,
daivī sampadvimokṣāya
nibandhāyāsurī matā |
mā śucaḥ sampadaṃ
daivīmabhijāto:'si pāṇḍava ||
--
daivī sampat-vimokṣāya
nibandhāya āsurī matā |
mā śucaḥ sampadam daivīm
abhijātaḥ asi pāṇḍava ||)
--
Meaning :
The daivī -divine attributes lead one to the liberation of the self, while the āsurī - demonic, keep one in the bondage. Grieve not O arjuna, for you are born with divine attributes.
--
Chapter 18, śloka 66,
sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
--
(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇa vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
--
Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
--
__________________________
’शुचः’ / ’śucaḥ’ - ’मा शुचः’ > शोक मत करो,
अध्याय 16, श्लोक 5,
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥
--
दैवी सम्पत्-विमोक्षाय निबन्धाय आसुरी मता ।
मा शुचः सम्पदम् दैवीम् अभिजातः असि पाण्डव ॥)
--
भावार्थ :
इन दो प्रकार की सम्पदों में से दैवी तो मुक्ति का हेतु होती है, जबकि आसुरी मनुष्य के बन्धन का कारण होती है । हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! तुम इस विषय में शोक मत करो, व्याकुल मत होओ, क्योंकि तुमने निश्चित ही दैवी सम्पदा से संपन्न होते हुए जन्म लिया है ।
--
अध्याय 18, श्लोक 66,
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
--
(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरण व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
--
भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन के प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
--
--
’शुचः’ / ’śucaḥ’ - (’mā śucaḥ’) > Grieve not,
Chapter 16, śloka 5,
daivī sampadvimokṣāya
nibandhāyāsurī matā |
mā śucaḥ sampadaṃ
daivīmabhijāto:'si pāṇḍava ||
--
daivī sampat-vimokṣāya
nibandhāya āsurī matā |
mā śucaḥ sampadam daivīm
abhijātaḥ asi pāṇḍava ||)
--
Meaning :
The daivī -divine attributes lead one to the liberation of the self, while the āsurī - demonic, keep one in the bondage. Grieve not O arjuna, for you are born with divine attributes.
--
Chapter 18, śloka 66,
sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
--
(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇa vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
--
Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
--
No comments:
Post a Comment