Thursday, July 24, 2014

आज का श्लोक, ’शोचति’ / ’śocati’

आज का श्लोक, ’शोचति’ / ’śocati’
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’शोचति’ / ’śocati’ - शोक करता है,

अध्याय 12, श्लोक 17,

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति ।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ॥
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(यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति ।
शुभ-अशुभ-परित्यागी भक्तिमान् यः सः मे प्रियः ॥)
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भावार्थ :
जो न इष्ट वस्तु की प्राप्ति में हर्षित और न अनिष्ट की प्राप्ति में उद्विग्न होता है, जो न शोक करता है, न कामना, शुभ और अशुभ दोनों को समान समझता हुआ दोनों को त्याग देनेवाला मेरा भक्त मुझे प्रिय है ।
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अध्याय 18, श्लोक 54,

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति ।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते परम् ॥
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(ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति ।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिम् लभते परम् ॥)

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भावार्थ :
ब्रह्म से एकीभूत हुआ उल्लसित मनवाला योगी न तो किसी के लिए शोक करता है, न किसी की आकाङ्क्षा ही करता है । वह तो सभी भूतों में समदृष्टि सहित मेरी परा भक्ति को प्राप्त हो जाता है ।
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’शोचति’ / ’śocati’ - grieves about,

Chapter , śloka 17,

yo na hṛṣyati na dveṣṭi
na śocati na kāṅkṣati |
śubhāśubhaparityāgī
bhaktimānyaḥ sa me priyaḥ ||
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(yo na hṛṣyati na dveṣṭi
na śocati na kāṅkṣati |
śubha-aśubha-parityāgī
bhaktimān yaḥ saḥ me priyaḥ ||)
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Meaning :
My devotee who neither rejoices when a desired result is achieved, nor is disappointed if an undesired and unfavorable one is obtained by him, is beloved to Me.
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Chapter 18, śloka 54,

brahmabhūtaḥ prasannātmā
na śocati na kāṅkṣati |
samaḥ sarveṣu bhūteṣu
madbhaktiṃ labhate param ||
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(brahmabhūtaḥ prasannātmā
na śocati na kāṅkṣati |
samaḥ sarveṣu bhūteṣu
madbhaktim labhate param ||)
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Meaning :
One who has realized Brahman as Self ( Atman) only, having thus attained oneness with the Self that is the same in all beings, attains Me in his Devotion Supreme to Me as well.
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