आज का श्लोक, ’शोचितुम्’ / ’śocitum’
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’शोचितुम्’ / ’śocitum’ - शोक करने के लिए
अध्याय 2, श्लोक 26,
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् ।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥
--
अथ च एनम् नित्यजातम् नित्यम् वा मन्यसे मृतम् ।
तथापि त्वम् महाबाहो न एवम् शोचितुम् अर्हसि ॥)
--
भावार्थ :
और यदि तुम इस (आत्मतत्व) को नित्य / सदैव जन्म लिया हुआ और नित्य / सदैव मृत मानते हो , तो भी हे महाबाहु (अर्जुन)! तुम्हारा इस विषय में शोक करना अनुचित है ।
--
अध्याय 2, श्लोक 27,
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
--
(जातस्य हि ध्रुवः मृत्युः ध्रुवम् जन्म मृतस्य च ।
तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे न त्वम् शोचितुम् अर्हसि ॥
--
भावार्थ :
जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्य है, और जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी अवश्य है । अतः तुम्हारे लिए अपरिहार्य (अवश्यम्भावी) के बारे में शोक करने का कोई औचित्य नहीं है ।
--
अध्याय 2, श्लोक 30,
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
--
देही नित्यम् अवध्यः अयम् देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुम् अर्हसि ॥
--
भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन) ! देह का वास्तविक स्वामी, वह चेतना जो देह को अपना कहती है, सभी देहों में सदैव अवध्य है, अर्थात् देह के बनने-मिटने से वह अप्रभावित रहता है । इसलिए सम्पूर्ण प्राणियों (में से किसी) के लिए भी तुम्हारा शोक करना उचित नहीं है ।
--
’शोचितुम्’ / ’śocitum’ - grieving for,
Chapter 2, śloka 26,
atha cainaṃ nityajātaṃ
nityaṃ vā manyase mṛtam |
tathāpi tvaṃ mahābāho
naivaṃ śocitumarhasi ||
--
atha ca enam nityajātam
nityam vā manyase mṛtam |
tathāpi tvam mahābāho
na evam śocitum arhasi ||)
--
Meaning :
And if you accept this (Self) as ever-born and ever-dead, then also O Mighty-armed (arjuna), you are not supposed to grieve for this.
--
Chapter 2, śloka 27,
jātasya hi dhruvo mṛtyur-
dhruvaṃ janma mṛtasya ca |
tasmādaparihārye:'rthe
na tvaṃ śocitumarhasi ||
--
(jātasya hi dhruvaḥ mṛtyuḥ
dhruvam janma mṛtasya ca |
tasmāt aparihārye arthe
na tvam śocitum arhasi ||
--
Meaning :
The death of one that is born is inevitable, and like-wise the birth of one that is dead. Therefore grieving for the inevitable is not fit for you.
--
Chapter 2, śloka 30,
dehī nityamavadhyo:'yaṃ
dehe sarvasya bhārata |
tasmātsarvāṇi bhūtāni
na tvaṃ śocitumarhasi ||
--
dehī nityam avadhyaḥ ayam
dehe sarvasya bhārata |
tasmāt sarvāṇi bhūtāni
na tvaṃ śocitum arhasi ||
--
Meaning :
The one in all the physical forms that has owned the body, is ever so unassailable O bhārata (arjuna) ! Therefore your grieving for all those beings is just meaningless.
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’शोचितुम्’ / ’śocitum’ - शोक करने के लिए
अध्याय 2, श्लोक 26,
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् ।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥
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अथ च एनम् नित्यजातम् नित्यम् वा मन्यसे मृतम् ।
तथापि त्वम् महाबाहो न एवम् शोचितुम् अर्हसि ॥)
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भावार्थ :
और यदि तुम इस (आत्मतत्व) को नित्य / सदैव जन्म लिया हुआ और नित्य / सदैव मृत मानते हो , तो भी हे महाबाहु (अर्जुन)! तुम्हारा इस विषय में शोक करना अनुचित है ।
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अध्याय 2, श्लोक 27,
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
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(जातस्य हि ध्रुवः मृत्युः ध्रुवम् जन्म मृतस्य च ।
तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे न त्वम् शोचितुम् अर्हसि ॥
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भावार्थ :
जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्य है, और जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी अवश्य है । अतः तुम्हारे लिए अपरिहार्य (अवश्यम्भावी) के बारे में शोक करने का कोई औचित्य नहीं है ।
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अध्याय 2, श्लोक 30,
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥
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देही नित्यम् अवध्यः अयम् देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुम् अर्हसि ॥
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन) ! देह का वास्तविक स्वामी, वह चेतना जो देह को अपना कहती है, सभी देहों में सदैव अवध्य है, अर्थात् देह के बनने-मिटने से वह अप्रभावित रहता है । इसलिए सम्पूर्ण प्राणियों (में से किसी) के लिए भी तुम्हारा शोक करना उचित नहीं है ।
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’शोचितुम्’ / ’śocitum’ - grieving for,
Chapter 2, śloka 26,
atha cainaṃ nityajātaṃ
nityaṃ vā manyase mṛtam |
tathāpi tvaṃ mahābāho
naivaṃ śocitumarhasi ||
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atha ca enam nityajātam
nityam vā manyase mṛtam |
tathāpi tvam mahābāho
na evam śocitum arhasi ||)
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Meaning :
And if you accept this (Self) as ever-born and ever-dead, then also O Mighty-armed (arjuna), you are not supposed to grieve for this.
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Chapter 2, śloka 27,
jātasya hi dhruvo mṛtyur-
dhruvaṃ janma mṛtasya ca |
tasmādaparihārye:'rthe
na tvaṃ śocitumarhasi ||
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(jātasya hi dhruvaḥ mṛtyuḥ
dhruvam janma mṛtasya ca |
tasmāt aparihārye arthe
na tvam śocitum arhasi ||
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Meaning :
The death of one that is born is inevitable, and like-wise the birth of one that is dead. Therefore grieving for the inevitable is not fit for you.
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Chapter 2, śloka 30,
dehī nityamavadhyo:'yaṃ
dehe sarvasya bhārata |
tasmātsarvāṇi bhūtāni
na tvaṃ śocitumarhasi ||
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dehī nityam avadhyaḥ ayam
dehe sarvasya bhārata |
tasmāt sarvāṇi bhūtāni
na tvaṃ śocitum arhasi ||
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Meaning :
The one in all the physical forms that has owned the body, is ever so unassailable O bhārata (arjuna) ! Therefore your grieving for all those beings is just meaningless.
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