आज का श्लोक,
’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’
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’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’ - जिसके चित्त का रजोगुण शान्त हो गया है, स्थिरबुद्धि,
अध्याय 6, श्लोक 27,
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् ।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥
--
(प्रशान्तमनसम् हि-एनम् योगिनम् सुखम् उत्तमम् ।
उपैति शान्तरजसम् ब्रह्मभूतम्-अकल्मषम् ॥
--
भावार्थ :
(अध्याय 6 के पिछले श्लोक 26 से आगे ...)
जिसका रजोगुण शान्त हो चुका है, अर्थात् चित्त की चञ्चलता प्रशमित हो गई है जिस योगी के मन की, उसके उस मन को ब्रह्म से एकीभूत होने का श्रेष्ठ अकल्मष सुख / आनन्द प्राप्त होता है ।
--
’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’ - one with tranquil mind, no more agitated or wandering here and there,
Chapter 6, śloka 27,
praśāntamanasaṃ hyenaṃ
yoginaṃ sukhamuttamam |
upaiti śāntarajasaṃ
brahmabhūtamakalmaṣam ||
--
(praśāntamanasam hi-enam
yoginam sukham uttamam |
upaiti śāntarajasam
brahmabhūtam-akalmaṣam ||
--
Meaning :
Such a mind of a yogI (seeker) that has become tranquil because of the freedom from fear and desire, and restlessness, soon attains the bliss supreme .
The bliss that is verily Brahman and of Brahman Only.
--
’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’
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’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’ - जिसके चित्त का रजोगुण शान्त हो गया है, स्थिरबुद्धि,
अध्याय 6, श्लोक 27,
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् ।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥
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(प्रशान्तमनसम् हि-एनम् योगिनम् सुखम् उत्तमम् ।
उपैति शान्तरजसम् ब्रह्मभूतम्-अकल्मषम् ॥
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भावार्थ :
(अध्याय 6 के पिछले श्लोक 26 से आगे ...)
जिसका रजोगुण शान्त हो चुका है, अर्थात् चित्त की चञ्चलता प्रशमित हो गई है जिस योगी के मन की, उसके उस मन को ब्रह्म से एकीभूत होने का श्रेष्ठ अकल्मष सुख / आनन्द प्राप्त होता है ।
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’शान्तरजसम्’ / ’śāntarajasam’ - one with tranquil mind, no more agitated or wandering here and there,
Chapter 6, śloka 27,
praśāntamanasaṃ hyenaṃ
yoginaṃ sukhamuttamam |
upaiti śāntarajasaṃ
brahmabhūtamakalmaṣam ||
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(praśāntamanasam hi-enam
yoginam sukham uttamam |
upaiti śāntarajasam
brahmabhūtam-akalmaṣam ||
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Meaning :
Such a mind of a yogI (seeker) that has become tranquil because of the freedom from fear and desire, and restlessness, soon attains the bliss supreme .
The bliss that is verily Brahman and of Brahman Only.
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