आज का श्लोक, ’शाश्वतम्’ / ’śāśvatam’
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’शाश्वतम्’ / ’śāśvatam’ - शाश्वत, सदा रहनेवाला,
अध्याय 10, श्लोक 12,
अर्जुन उवाच :
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥
--
(परम् ब्रह्म परम् धाम पवित्रम् परमम् भवान् ।
पुरुषम् शाश्वतम् दिव्यम् आदिदेवम् अजम् विभुम् ॥)
--
भावार्थ :
अर्जुन ने कहा :
आप परम ब्रह्म हैं, परम धाम, परम पवित्र पुरुष, शाश्वत, दिव्य, आदिदेव हैं, आप जन्मरहित और विश्वरूप हैं ।
--
अध्याय 18, श्लोक 56,
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ॥
--
(सर्वकर्माणि अपि सदा कुर्वाणः मद्व्यपाश्रयः ।
मत्प्रसादात् अवाप्नोति शाश्वतम् पदम् अव्ययम् ॥)
--
भावार्थ :
मुझमें समाहित चित्त से सदैव सभी (विभिन्न) कर्मों को करते हुए भी (पिछले श्लोक 55 में वर्णित मेरा भक्त) मेरी कृपा से अविनाशी परम पद (अर्थात् मुझको ) पा लेता है ।
--
टिप्पणी :
अध्याय 18, श्लोक 55,
भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्वतः ।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ॥
--
(भक्त्या माम् अभिजानाति यावान् यः च अस्मि तत्त्वतः।
ततः माम् तत्त्वतः ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ।)
--
भावार्थ :
मुझमें भक्ति होने से वह (मेरा भक्त) भली-भाँति जान जाता है, कि तत्त्वतः मेरा स्वरूप क्या और कितना (असीम, अखण्ड, अनिर्वचनीय) है, जो कि तत्त्वतः हूँ । इसके बाद मुझको तत्वतः जानकर मुझमें प्रविष्ट हो जाता है, मुझसे एकत्व को प्राप्त हो जाता है ।
--
अध्याय 18, श्लोक 62,
--
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
--
(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
--
’शाश्वतम्’ / ’śāśvatam’ - eternal, abiding for ever,
Chapter 10, śloka 12,
paraṃ brahma paraṃ dhāma
pavitraṃ paramaṃ bhavān |
puruṣaṃ śāśvataṃ divya-
mādidevamajaṃ vibhum ||
--
(param brahma param dhāma
pavitram paramam bhavān |
puruṣam śāśvatam divyam
ādidevam ajam vibhum ||)
--
Meaning :
Arjuna said (To Lord śrīkṛṣṇa) :
You are The Brahman Supreme, The Abode Supreme, Holiest and Sacred. You are the Spirit Eternal, Divine, The God Primal, Unborn and All-pervading.
--
Chapter 18, śloka 56,
sarvakarmāṇyapi sadā
kurvāṇo madvyapāśrayaḥ
matprasādādavāpnoti
śāśvataṃ padamavyayam ||
--
(sarvakarmāṇi api sadā
kurvāṇaḥ madvyapāśrayaḥ |
matprasādāt avāpnoti
śāśvatam padam avyayam ||)
--
Meaning :
With mind dedicated to Me, performing all actions (that fall to his lot according to destiny) with dispassion, (My devotee, as described in the earlier śloka 55 of this Chapter 18) by My Grace attains the Supreme Imperishable State (That is Me only).
--
Note :
Chapter 18, śloka 55,
bhaktyā māmabhijānāti
yāvānyaścāsmi tatvataḥ |
tato māṃ tattvato jñātvā
viśate tadanantaram ||
--
(bhaktyā mām abhijānāti
yāvān yaḥ ca asmi tattvataḥ|
tataḥ mām tattvataḥ jñātvā
viśate tadanantaram |)
--
Meaning :
With devotion (My devotee) knows well My extent (Formless, Indivisible, Indescribable) , What and How I AM, And having realized My Reality, enters Me and merges into Me.
--
Chapter 18, śloka 62,
tameva śaraṇaṃ gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tatprasādātparāṃ śāntiṃ
sthānaṃ prāpsyasi śāśvatam ||
--
(tam eva śaraṇam gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tat-prasādāt parām śāntim
sthānam prāpsyasi śāśvatam ||)
--
Meaning :
Therefore, with all your heart, seek shelter in Him alone. Through His grace, you shall attain the abode that is bliss supreme and peace eternal.
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’शाश्वतम्’ / ’śāśvatam’ - शाश्वत, सदा रहनेवाला,
अध्याय 10, श्लोक 12,
अर्जुन उवाच :
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥
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(परम् ब्रह्म परम् धाम पवित्रम् परमम् भवान् ।
पुरुषम् शाश्वतम् दिव्यम् आदिदेवम् अजम् विभुम् ॥)
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भावार्थ :
अर्जुन ने कहा :
आप परम ब्रह्म हैं, परम धाम, परम पवित्र पुरुष, शाश्वत, दिव्य, आदिदेव हैं, आप जन्मरहित और विश्वरूप हैं ।
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अध्याय 18, श्लोक 56,
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ॥
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(सर्वकर्माणि अपि सदा कुर्वाणः मद्व्यपाश्रयः ।
मत्प्रसादात् अवाप्नोति शाश्वतम् पदम् अव्ययम् ॥)
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भावार्थ :
मुझमें समाहित चित्त से सदैव सभी (विभिन्न) कर्मों को करते हुए भी (पिछले श्लोक 55 में वर्णित मेरा भक्त) मेरी कृपा से अविनाशी परम पद (अर्थात् मुझको ) पा लेता है ।
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टिप्पणी :
अध्याय 18, श्लोक 55,
भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्वतः ।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ॥
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(भक्त्या माम् अभिजानाति यावान् यः च अस्मि तत्त्वतः।
ततः माम् तत्त्वतः ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ।)
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भावार्थ :
मुझमें भक्ति होने से वह (मेरा भक्त) भली-भाँति जान जाता है, कि तत्त्वतः मेरा स्वरूप क्या और कितना (असीम, अखण्ड, अनिर्वचनीय) है, जो कि तत्त्वतः हूँ । इसके बाद मुझको तत्वतः जानकर मुझमें प्रविष्ट हो जाता है, मुझसे एकत्व को प्राप्त हो जाता है ।
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अध्याय 18, श्लोक 62,
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तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
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(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
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’शाश्वतम्’ / ’śāśvatam’ - eternal, abiding for ever,
Chapter 10, śloka 12,
paraṃ brahma paraṃ dhāma
pavitraṃ paramaṃ bhavān |
puruṣaṃ śāśvataṃ divya-
mādidevamajaṃ vibhum ||
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(param brahma param dhāma
pavitram paramam bhavān |
puruṣam śāśvatam divyam
ādidevam ajam vibhum ||)
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Meaning :
Arjuna said (To Lord śrīkṛṣṇa) :
You are The Brahman Supreme, The Abode Supreme, Holiest and Sacred. You are the Spirit Eternal, Divine, The God Primal, Unborn and All-pervading.
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Chapter 18, śloka 56,
sarvakarmāṇyapi sadā
kurvāṇo madvyapāśrayaḥ
matprasādādavāpnoti
śāśvataṃ padamavyayam ||
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(sarvakarmāṇi api sadā
kurvāṇaḥ madvyapāśrayaḥ |
matprasādāt avāpnoti
śāśvatam padam avyayam ||)
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Meaning :
With mind dedicated to Me, performing all actions (that fall to his lot according to destiny) with dispassion, (My devotee, as described in the earlier śloka 55 of this Chapter 18) by My Grace attains the Supreme Imperishable State (That is Me only).
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Note :
Chapter 18, śloka 55,
bhaktyā māmabhijānāti
yāvānyaścāsmi tatvataḥ |
tato māṃ tattvato jñātvā
viśate tadanantaram ||
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(bhaktyā mām abhijānāti
yāvān yaḥ ca asmi tattvataḥ|
tataḥ mām tattvataḥ jñātvā
viśate tadanantaram |)
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Meaning :
With devotion (My devotee) knows well My extent (Formless, Indivisible, Indescribable) , What and How I AM, And having realized My Reality, enters Me and merges into Me.
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Chapter 18, śloka 62,
tameva śaraṇaṃ gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tatprasādātparāṃ śāntiṃ
sthānaṃ prāpsyasi śāśvatam ||
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(tam eva śaraṇam gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tat-prasādāt parām śāntim
sthānam prāpsyasi śāśvatam ||)
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Meaning :
Therefore, with all your heart, seek shelter in Him alone. Through His grace, you shall attain the abode that is bliss supreme and peace eternal.
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