Sunday, July 20, 2014

आज का श्लोक, ’सख्युः’ / ’sakhyuḥ’

आज का श्लोक, ’सख्युः’ / ’sakhyuḥ’
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’सख्युः’ / ’sakhyuḥ’ - सखा के, मित्र के,

अध्याय 11, श्लोक 44,
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तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वाहमीशमीड्यम् ।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥
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(तस्मात्  प्रणम्य प्रणिधाय कायम्
प्रसादये त्वाम् अहम् ईशम् ईड्यम् ।
पिता-इव पुत्रस्य सखा-इव सख्युः 
प्रियः प्रियायाः अर्हसि देव सोढुम् ॥)
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भावार्थ :
अतः आपके समक्ष (चरणों में ) काया और सिर झुकाकर निवेदन करते हुए, ताकि हे पूज्य परमेश्वर आप मुझ पर कृपा करते हुए प्रसन्न हों, और जैसे पिता पुत्र के, सखा सखा के और स्वामी प्रिया के अपराध सहन कर लेता है (और उन्हें क्षमा कर देता है) आप भी मेरे किए अपराध को क्षमा कर दें ।
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’सख्युः’ / ’sakhyuḥ’ - of a friend,


Chapter 11, śloka 44,

tasmātpraṇamya praṇidhāya kāyaṃ
prasādaye tvāhamīśamīḍyam |
piteva putrasya sakheva sakhyuḥ
priyaḥ priyāyārhasi deva soḍhum ||
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(tasmāt  praṇamya praṇidhāya kāyam
prasādaye tvām aham īśam īḍyam |
pitā-iva putrasya sakhā-iva sakhyuḥ 
priyaḥ priyāyāḥ arhasi deva soḍhum ||)
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Meaning :
Therefore prostrating before you I ask forgiveness of You, O Lord! Just as a father to his son, a friend to his friend and a lover forgives his dear, please O Lord, Have mercy on me, and forgive me.
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