Sunday, July 20, 2014

आज का श्लोक, ’श्वसन्’ / ’śvasan’

आज का श्लोक,
’श्वसन्’ / ’śvasan’
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’श्वसन्’ / ’śvasan’ - श्वासोच्छ्वास करते हुए, साँस लेते हुए,

अध्याय 5, श्लोक 8,

नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन्
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(न एव किञ्चित् करोमि इति युक्तः मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यन् शृण्वन् स्पृशन् जिघ्रन् अश्नन् गच्छन् स्वपन् श्वसन् ॥ )

भावार्थ :
देखते हुए, सुनते हुए, छूते हुए, सूँघते हुए, खाते हुए, आते-जाते हुए, सोते हुए, और श्वासोच्छ्वास करते हुए, तत्त्ववेत्ता, तत्त्व को जाननेवाला यह  भलीभाँति जानता है कि मैं कुछ भी नहीं कर रहा ।
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’श्वसन्’ / ’śvasan’- while breathing,

Chapter 5, śloka 8,

naiva kiñcitkaromīti
yukto manyeta tattvavit |
paśyañśṛṇvanspṛśañjighrann-
aśnangacchansvapañśvasan ||
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(na eva kiñcit karomi iti
yuktaḥ manyeta tattvavit |
paśyan śṛṇvan spṛśan jighran
aśnan gacchan svapan śvasan || )

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Meaning :
While seeing, hearing, touching, smelling, eating, going and coming (walking), sleeping and breathing, one who is well-settled in yoga knows for sure, :"I do none of these various activities."  
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