Thursday, July 17, 2014

आज का श्लोक, ’सततयुक्ताः’ / ’satatayuktā:’

आज का श्लोक,
’सततयुक्ताः’ / ’satatayuktā:’
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सततयुक्ताः’ / ’satatayuktā:’ - निरन्तर आपमें निमग्न-चित्त,

अध्याय 12, श्लोक 1,

अर्जुन उवाच :
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ।
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(एवम् सततयुक्ताः ये भक्ताः त्वाम् पर्युपासते ।
ये च अपि अक्षरम्-अव्यक्तम् तेषाम् के योगवित्तमाः ॥)
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भावार्थ :
अर्जुन ने प्रश्न किया :
और वे भक्त जो निरंतर आपका स्मरण करते हुए आपकी उपासना करते हैं, तथा वे जो आपके अक्षर और अव्यक्त (ब्रह्म के) स्वरूप की उपासना करते हैं, उनमें से किसे उत्तम योगविद् कहा जा सकता है?

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सततयुक्ताः’ / ’satatayuktā:’ -With the mind ever absorbed in You.

Chapter 12, śloka 1,

arjuna uvāca :

evaṃ satatayuktā ye
bhaktāstvāṃ paryupāsate |
ye cāpyakṣaramavyaktaṃ
teṣāṃ ke yogavittamāḥ |
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(evam satatayuktāḥ ye
bhaktāḥ tvām paryupāsate |
ye ca api akṣaram-avyaktam
teṣām ke yogavittamāḥ ||)
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Meaning :
arjuna asked :
Out of Those who keep on remembering you every moment with utter devotion and those also, who worship you as the Imperishable, Formless Reality (Brahman), Who of them could be said of having the higher attainment?  
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