आज का श्लोक, ’सतः’ / ’sataḥ’
___________________________
अध्याय 2, श्लोक 16,
’सतः’ / ’sataḥ’ - ’सत्’ का, (असतः - ’असत्’ का),
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥
--
(न असतः विद्यते भावः न अभावः विद्यते सतः ।
उभयोः अपि दृष्टः अन्तः अनयोः तत्त्वदर्शिभिः ॥)
--
भावार्थ :
न तो असत् की विद्यमानता है, और न सत् की अविद्यमानता । तत्त्वदर्शियों द्वारा उन दोनों (असत् और सत्) का भी यथार्थ रूप इस प्रकार से देखा जाता है ।
--
टिप्पणी : ’असत्’ का अर्थ है ’प्रतीति’, ’सत्’ का अर्थ है, आधारभूत मूल स्थिर वस्तु । सभी प्रतीतियों के मूल में वह चेतना जो प्रतीति के परिवर्तन के दौरान स्थिर और अपरिवर्तित होती है, ’सत्’ है, इसलिए ’असत्’ की उपस्थिति केवल प्रतीति है, जिसकी सत्यता सदा संदिग्ध है, और जान लेने पर तो वह भी चित्त के ’संकल्प’ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ऐसा ’देखा’ जाता है । इसी प्रकार से ’दृष्टा’ या ’देखनेवाले तत्व’ अर्थात् ’चेतना’ का अबाध अस्तित्व स्व-प्रमाणित सत्यता है, जिस पर सन्देह तक नहीं किया जा सकता क्योंकि तब सन्देह जिसे है, उसका अस्तित्व स्वीकार करना ही होगा ।
--
’सतः’ / ’sataḥ’ - of Reality,
Chapter 2, śloka 16,
nāsato vidyate bhāvo
nābhāvo vidyate sataḥ |
ubhayorapi dṛṣṭo:'ntast-
vanayostattvadarśibhiḥ ||
--
(na asataḥ vidyate bhāvaḥ
na abhāvaḥ vidyate sataḥ |
ubhayoḥ api dṛṣṭaḥ antaḥ
anayoḥ tattvadarśibhiḥ ||)
--
Meaning :
Unreality has no existence while Reality has no absence. The truth of both has been realized / known explicitly by those, who have known the essence of the two.
--
Note : This Reality is for ever, eternal, where-in and where-from all manifestation emerges out and returns to.
___________________________
अध्याय 2, श्लोक 16,
’सतः’ / ’sataḥ’ - ’सत्’ का, (असतः - ’असत्’ का),
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥
--
(न असतः विद्यते भावः न अभावः विद्यते सतः ।
उभयोः अपि दृष्टः अन्तः अनयोः तत्त्वदर्शिभिः ॥)
--
भावार्थ :
न तो असत् की विद्यमानता है, और न सत् की अविद्यमानता । तत्त्वदर्शियों द्वारा उन दोनों (असत् और सत्) का भी यथार्थ रूप इस प्रकार से देखा जाता है ।
--
टिप्पणी : ’असत्’ का अर्थ है ’प्रतीति’, ’सत्’ का अर्थ है, आधारभूत मूल स्थिर वस्तु । सभी प्रतीतियों के मूल में वह चेतना जो प्रतीति के परिवर्तन के दौरान स्थिर और अपरिवर्तित होती है, ’सत्’ है, इसलिए ’असत्’ की उपस्थिति केवल प्रतीति है, जिसकी सत्यता सदा संदिग्ध है, और जान लेने पर तो वह भी चित्त के ’संकल्प’ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ऐसा ’देखा’ जाता है । इसी प्रकार से ’दृष्टा’ या ’देखनेवाले तत्व’ अर्थात् ’चेतना’ का अबाध अस्तित्व स्व-प्रमाणित सत्यता है, जिस पर सन्देह तक नहीं किया जा सकता क्योंकि तब सन्देह जिसे है, उसका अस्तित्व स्वीकार करना ही होगा ।
--
’सतः’ / ’sataḥ’ - of Reality,
nāsato vidyate bhāvo
nābhāvo vidyate sataḥ |
ubhayorapi dṛṣṭo:'ntast-
vanayostattvadarśibhiḥ ||
--
(na asataḥ vidyate bhāvaḥ
na abhāvaḥ vidyate sataḥ |
ubhayoḥ api dṛṣṭaḥ antaḥ
anayoḥ tattvadarśibhiḥ ||)
--
Meaning :
Unreality has no existence while Reality has no absence. The truth of both has been realized / known explicitly by those, who have known the essence of the two.
--
Note : This Reality is for ever, eternal, where-in and where-from all manifestation emerges out and returns to.
--
No comments:
Post a Comment