Sunday, July 27, 2014

आज का श्लोक, ’शुनि’ / ’śuni’

आज का श्लोक,  ’शुनि’ / ’śuni’ 
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’शुनि’ / ’śuni’ - श्वान में,

अध्याय 5, श्लोक 18,
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विद्याविनयसंपन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
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(विद्याविनयसंपन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥)
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भावार्थ :
तत्ववेत्ता विद्याविनय से संपन्न ब्राह्मण में,  गौओं, हाथियों, श्वानों तथा श्वपचों (कुत्ते का मांस खानेवाले), सभी में समान रूप से विद्यमान उसी एकमेव चैतन्य परब्रह्म को देखते हैं ।
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’शुनि’ / ’śuni’ -  in a dog,

Chapter 5,  śloka 18,

vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||
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(vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||)
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Meaning :
A truly wise one who has known Reality / 'Brahman' / 'Self', sees the same in them all, -in a learned well-behaved  brāhmaṇa, in a cow, elephant, dog and an outcast (who feeds on dogs).
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