Monday, July 14, 2014

आज का श्लोक, ’सत्त्ववताम्’ / ’sattvavatām’

आज का श्लोक,
’सत्त्ववताम्’ / ’sattvavatām’ 
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’सत्त्ववताम्’ / ’sattvavatām’ - सात्त्विक प्रवृत्तिवालों का,

अध्याय 10, श्लोक 36,

द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ।
जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥
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(द्यूतम् छलयताम् अस्मि तेजः तेजस्विनाम् अहम् ।
जयः अस्मि व्यवसायः अस्मि सत्त्वम् सत्त्ववताम् अहम् ॥)
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भावार्थ :
छल करनेवालों में जुआ, और प्रभावशाली पुरुषों का तेज मैं हूँ, जीतनेवालों की विजय हूँ, संकल्पशीलों का संकल्प हूँ, एवं सात्त्विक प्रवृत्तिवाले पुरुषों की सात्त्विकता मैं हूँ ।
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’सत्त्ववताम्’ / ’sattvavatām’ - of those who are of sāttvika temperament.
 
Chapter 10, śloka 36,

dyūtaṃ chalayatāmasmi 
tejastejasvināmaham |
jayo:'smi vyavasāyo:'smi 
sattvaṃ sattvavatāmaham ||
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(dyūtam chalayatām asmi 
tejaḥ tejasvinām aham |
jayaḥ asmi vyavasāyaḥ asmi 
sattvam sattvavatām aham ||) 
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Meaning :
I AM the gambling (betting) of the deceitful, splendor of the influential, I AM victory, effort / enterprise, and I AM the joy, peace of those who are of sāttvika temperament.
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