आज का श्लोक,
’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’
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’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’ - आसक्तिरहित, रागशून्य, मोहरहित,
अध्याय 11, श्लोक 55,
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥
--
(मत्कर्म-कृत्-मत्परमः मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः सः माम् एति पाण्डव ॥)
--
भावार्थ :
हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! जो पुरुष मेरे लिए ही (प्रारब्धवश प्राप्त हुए) आसक्तिरहित होकर, सम्पूर्ण कर्मों को करता है (और उन्हें मुझे ही अर्पित करता है), जो सभी प्राणियों से वैररहित है, ऐसा मेरा वह भक्त मुझे ही प्राप्त होता है ।
--
’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’ - without attachment, free from involvement, detached,
Chapter 11, śloka 55,
matkarmakṛnmatparamo
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu
yaḥ sa māmeti pāṇḍava ||
--
(matkarma-kṛt-matparamaḥ
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu yaḥ
saḥ mām eti pāṇḍava ||)
--
Meaning :
One Who dedicates all actions to Me, Who works for Me only, Who is committed to Me, devoid of all attachment, and having enmity with no one, attains Me O pāṇḍava (arjuna)!
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’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’
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’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’ - आसक्तिरहित, रागशून्य, मोहरहित,
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥
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(मत्कर्म-कृत्-मत्परमः मद्भक्तः सङ्गवर्जितः ।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः सः माम् एति पाण्डव ॥)
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भावार्थ :
हे पाण्डुपुत्र अर्जुन! जो पुरुष मेरे लिए ही (प्रारब्धवश प्राप्त हुए) आसक्तिरहित होकर, सम्पूर्ण कर्मों को करता है (और उन्हें मुझे ही अर्पित करता है), जो सभी प्राणियों से वैररहित है, ऐसा मेरा वह भक्त मुझे ही प्राप्त होता है ।
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’सङ्गवर्जितः’ / ’saṅgavarjitaḥ’ - without attachment, free from involvement, detached,
Chapter 11, śloka 55,
matkarmakṛnmatparamo
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu
yaḥ sa māmeti pāṇḍava ||
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(matkarma-kṛt-matparamaḥ
madbhaktaḥ saṅgavarjitaḥ |
nirvairaḥ sarvabhūteṣu yaḥ
saḥ mām eti pāṇḍava ||)
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Meaning :
One Who dedicates all actions to Me, Who works for Me only, Who is committed to Me, devoid of all attachment, and having enmity with no one, attains Me O pāṇḍava (arjuna)!
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