आज का श्लोक, ’शूद्राः’ / ’śūdrāḥ’
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’शूद्राः’ / ’śūdrāḥ’ - शूद्र वर्ण,
अध्याय 9, श्लोक 32,
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
--
(माम् हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः ते अपि यान्ति पराम् गतिम् ॥)
--
भावार्थ :
हे अर्जुन, मेरे आश्रय में शरण लेनेवाले भक्त पापयोनि भी हों, अर्थात् भले ही उन्होंने पापजनित कुसंस्कारों सहित जन्म लिया हो, या स्त्री, वैश्य अथवा शूद्र ही हों, वे भी परम गति को ही (अर्थात् मुझे ही, मेरे ही उस परम धाम को प्राप्त होते हैं, जहाँ से पुनः जन्म-मृत्यु नहीं होते ।)
--
’शूद्राः’ / ’śūdrāḥ’ - one of the four orders of the society according to vedika tradition. The other three are brāhmaṇa, kṣatriya and vaiśya.
Chapter 9, śloka 32,
māṃ hi pārtha vyapāśritya
ye:'pi syuḥ pāpayonayaḥ |
striyo vaiśyāstathā śūdrās-
te:'pi yānti parāṃ gatim ||
--
(mām hi pārtha vyapāśritya
ye api syuḥ pāpayonayaḥ |
striyaḥ vaiśyāḥ tathā śūdrāḥ
te api yānti parām gatim ||)
--
Meaning :
Who-so-ever seeking shelter in Me, be they of sinful birth, women, or born in lower orders of the society, -like vaiśya, or even śūdra, all they attain the Supreme state.
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’शूद्राः’ / ’śūdrāḥ’ - शूद्र वर्ण,
अध्याय 9, श्लोक 32,
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
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(माम् हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः ते अपि यान्ति पराम् गतिम् ॥)
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भावार्थ :
हे अर्जुन, मेरे आश्रय में शरण लेनेवाले भक्त पापयोनि भी हों, अर्थात् भले ही उन्होंने पापजनित कुसंस्कारों सहित जन्म लिया हो, या स्त्री, वैश्य अथवा शूद्र ही हों, वे भी परम गति को ही (अर्थात् मुझे ही, मेरे ही उस परम धाम को प्राप्त होते हैं, जहाँ से पुनः जन्म-मृत्यु नहीं होते ।)
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’शूद्राः’ / ’śūdrāḥ’ - one of the four orders of the society according to vedika tradition. The other three are brāhmaṇa, kṣatriya and vaiśya.
Chapter 9, śloka 32,
māṃ hi pārtha vyapāśritya
ye:'pi syuḥ pāpayonayaḥ |
striyo vaiśyāstathā śūdrās-
te:'pi yānti parāṃ gatim ||
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(mām hi pārtha vyapāśritya
ye api syuḥ pāpayonayaḥ |
striyaḥ vaiśyāḥ tathā śūdrāḥ
te api yānti parām gatim ||)
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Meaning :
Who-so-ever seeking shelter in Me, be they of sinful birth, women, or born in lower orders of the society, -like vaiśya, or even śūdra, all they attain the Supreme state.
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