Monday, July 14, 2014

आज का श्लोक, ’सदसद्योनिजन्मसु ’ / ’sadasadyonijanmasu’

आज का श्लोक,
’सदसद्योनिजन्मसु ’ / ’sadasadyonijanmasu’  
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’सदसद्जन्मसु’ / ’sadasadjanmasu’ - शुभ-अशुभ योनियों में

अध्याय 13, श्लोक 21,

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसङ्गोऽस्यः सदसद्योनिजन्मसु
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(पुरुषः हि प्रकृतिस्थः हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् ।
कारणम् गुणसङ्गः अस्य सत्-असत्-योनि-जन्मसु ॥)

भावार्थ :
प्रकृति (अर्थात् उसके तीन गुणों) में रमा हुआ पुरुष ही, प्रकृति से उत्पन्न होनेवाले उन तीन गुणों का उपभोग करता है, और गुणों से उसकी ऐसी संलिप्तता ही उसके शुभ-अशुभ योनियों में जन्म लेने का कारण होती है ।
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’सदसद्योनिजन्मसु ’ / ’sadasadyonijanmasu’   - in different good or evil yoni-s / wombs / births,

Chapter 13, śloka 21,

puruṣaḥ prakṛtistho hi
bhuṅkte prakṛtijānguṇān |
kāraṇaṃ guṇasaṅgo:'syaḥ
sadasadyonijanmasu ||
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(puruṣaḥ hi prakṛtisthaḥ hi
bhuṅkte prakṛtijān guṇān |
kāraṇam guṇasaṅgaḥ asya
sat-asat-yoni-janmasu ||)
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Meaning :
the deep involvement of soul (puruṣa), in the prakṛti (the three attributes generated by prakṛti),  causes for his birth in a body through different good or evil wombs.
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