आज का श्लोक, ’सखा’ / ’sakhā’
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’सखा’ / ’sakhā’ - मित्र,
अध्याय 4, श्लोक 3,
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स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
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(सः एव अयम् मया ते अद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तः असि मे सखा च इति रहस्यम् हि एतत् उत्तमम् ॥)
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भावार्थ :
वही पुरातन योग मेरे द्वारा आज तुम्हारे लिए कहा गया, क्योंकि तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो और यह (योग) अत्यन्त श्रेष्ठ एक रहस्य है, इसलिए ।
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अध्याय 11 , श्लोक 41,
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सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं
हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।
अजानता महिमानं तवेदं
मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥
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(सखा इति मत्वा प्रसभं यत्-उक्तम्
हे कृष्ण हे यादव हे सखे इति ।
अजानता महिमानम् तव इदम्
मया प्रमादात् प्रणयेन वा अपि ।)
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भावार्थ :
हे कृष्ण, हे यादव, हे सखे! आपकी इस महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण, मेरे द्वारा असावधानतावश, हठपूर्वक या प्रीति के आवेश में भी जो भी कहा गया हो, ...
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’सखा’ / ’sakhā’ - मित्र,
अध्याय 4, श्लोक 3,
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स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
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(सः एव अयम् मया ते अद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तः असि मे सखा च इति रहस्यम् हि एतत् उत्तमम् ॥)
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भावार्थ :
वही पुरातन योग मेरे द्वारा आज तुम्हारे लिए कहा गया, क्योंकि तुम मेरे भक्त और प्रिय सखा हो और यह (योग) अत्यन्त श्रेष्ठ एक रहस्य है, इसलिए ।
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अध्याय 11 , श्लोक 41,
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सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं
हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।
अजानता महिमानं तवेदं
मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥
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(सखा इति मत्वा प्रसभं यत्-उक्तम्
हे कृष्ण हे यादव हे सखे इति ।
अजानता महिमानम् तव इदम्
मया प्रमादात् प्रणयेन वा अपि ।)
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भावार्थ :
हे कृष्ण, हे यादव, हे सखे! आपकी इस महिमा से अनभिज्ञ होने के कारण, मेरे द्वारा असावधानतावश, हठपूर्वक या प्रीति के आवेश में भी जो भी कहा गया हो, ...
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अध्याय 11, श्लोक 44,
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तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वाहमीशमीड्यम् ।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥
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(तस्मात् प्रणम्य प्रणिधाय कायम् प्रसादये त्वाम् अहम् ईशम् ईड्यम् ।
पिता-इव पुत्रस्य सखा-इव सख्युः प्रियः प्रियायाः अर्हसि देव सोढुम् ॥)
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भावार्थ :
अतः आपके समक्ष (चरणों में ) काया और सिर झुकाकर निवेदन करते हुए, ताकि हे पूज्य परमेश्वर आप मुझ पर कृपा करते हुए प्रसन्न हों, और जैसे पिता पुत्र के, सखा सखा के और स्वामी प्रिया के अपराध सहन कर लेता है (और उन्हें क्षमा कर देता है) आप भी मेरे किए अपराध को क्षमा कर दें ।
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Chapter 4, śloka 3,
sa evāyaṃ mayā te:'dya
yogaḥ proktaḥ purātanaḥ |
bhakto:'si me sakhā ceti
rahasyaṃ hyetaduttamam ||
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(saḥ eva ayam mayā te adya
yogaḥ proktaḥ purātanaḥ |
bhaktaḥ asi me sakhā ca iti
rahasyam hi etat uttamam ||)
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Meaning :
The very same (Yoga) is imparted by Me unto you today, (as) you are My devotee, and also a beloved friend, and this mystery is the most holy, sacred and a deep secret.
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Chapter 11, śloka 41,
sakheti matvā prasabhaṃ yaduktaṃ
he kṛṣṇa he yādava he sakheti |
ajānatā mahimānaṃ tavedaṃ
mayā pramādātpraṇayena vāpi ||
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(sakhā iti matvā prasabhaṃ yat-uktam
he kṛṣṇa he yādava he sakhe iti |
ajānatā mahimānam tava idam
mayā pramādāt praṇayena vā api |)
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Meaning :
O kṛṣṇa! O yādava! O Friend!
Not knowing Your this Glory, Either through negligence, insistence or in the spirit of friendship, whatever I might have said unto you , ( I apologize for them)
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Chapter 11, śloka 44,
tasmātpraṇamya praṇidhāya kāyaṃ
prasādaye tvāhamīśamīḍyam |
piteva putrasya sakheva sakhyuḥ
priyaḥ priyāyārhasi deva soḍhum ||
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(tasmāt praṇamya praṇidhāya kāyam
prasādaye tvām aham īśam īḍyam |
pitā-iva putrasya sakhā-iva sakhyuḥ
priyaḥ priyāyāḥ arhasi deva soḍhum ||)
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Meaning :
Therefore prostrating before you I ask forgiveness of You, O Lord! Just as a father to his son, a friend to his friend and a lover forgives his dear, please O Lord, Have mercy on me, and forgive me.
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