Monday, July 21, 2014

आज का श्लोक, ’श्रेष्ठः’ / ’śreṣṭhaḥ’

आज का श्लोक, ’श्रेष्ठः’ / ’śreṣṭhaḥ’
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’श्रेष्ठः’ / ’śreṣṭhaḥ’ - उत्कृष्ट, उच्चतर,

अध्याय 3, श्लोक 21,

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥
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(यत् यत् आचरति श्रेष्ठः तत् तत् एव इतरः जनः ।
सः यत् प्रमाणम् कुरुते लोकः तत् अनुवर्तते ॥)
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भावार्थ :
श्रेष्ठ पुरुष जैसा, जो-जो आचरण करता है, अन्य लोग भी वैसा ही आचरण किया करते हैं । वह जिसे महत्व देता है और उचित कहता है, लोग भी उसी के अनुसार बरतने लगते हैं ।

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’श्रेष्ठः’ / ’śreṣṭhaḥ’ - Elite, Of higher social status and rank,

Chapter 3, śloka 21,

yadyadācarati śreṣṭhas-
tattadevetaro janaḥ |
sa yatpramāṇaṃ kurute
lokastadanuvartate ||
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(yat yat ācarati śreṣṭhaḥ 
tat tat eva itaraḥ janaḥ |
saḥ yat pramāṇam kurute
lokaḥ tat anuvartate ||)
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Meaning :
The way men of higher status behave, is followed by ordinary people. Whatever great men think of as right and good, others also tend to do the same.
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