Monday, July 28, 2014

आज का श्लोक, ’शुक्लः’ / ’śuklaḥ’

आज का श्लोक, ’शुक्लः’ / ’śuklaḥ’
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’शुक्लः’ / ’śuklaḥ’ - चन्द्रमा का शुक्ल-पक्ष,

अध्याय 8, श्लोक 24,

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥
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(अग्निः ज्योतिः अहः शुक्लः षण्मासाः उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदः जनाः ॥)
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भावार्थ :
अग्नि (वेदोक्त / ज्ञान का मार्ग), ज्योति (आत्म-ज्ञान का मार्ग), दिन का समय, चन्द्रमा का शुक्ल-पक्ष , उत्तरायण  (सौर-वर्ष का पूर्वार्ध) इस काल और स्थिति में जो योगी शरीर त्यागते हैं, ब्रहम (के स्वरूप) को जाननेवाले वे ब्रह्मविद् ब्रह्म को प्राप्त होते हैं, अर्थात् ब्रह्मलीन होते हैं ।
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’शुक्लः’ / ’śuklaḥ’ -  the fortnight of the bright moon.

Chapter 8, śloka 24,

agnirjyotirahaḥ śuklaḥ 
ṣaṇmāsā uttarāyaṇam |
tatra prayātā gacchanti 
brahma brahmavido janāḥ ||
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(agniḥ jyotiḥ ahaḥ śuklaḥ 
ṣaṇmāsāḥ uttarāyaṇam |
tatra prayātā gacchanti 
brahma brahmavidaḥ janāḥ ||)
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Meaning : Fire (of Veda /  jñāna), awakening (jyoti), Clarity (śukla-  the fortnight of the bright moon), The six months during summer-solstice, (the First half-solar year of Indian calendar), are the times indicative of those yogī who having realized Brahman, attain Brahman after  their release from the body. 
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