आज का श्लोक, ’सज्जते’ / ’sajjate’
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’सज्जते’ / ’sajjate’ - आसक्त होता है,
अध्याय 3, श्लोक 28,
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥
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(तत्त्ववित् तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणाः गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ॥)
--
भावार्थ :
हे महाबाहु (अर्जुन)! तत्व को जाननेवाला भली-भाँति जानता है कि गुणों के और कर्मों के वर्गीकरण के अनुसार, गुण ही गुणों में परस्पर व्यवहार करते हुए कर्म को घटित करते हैं, और इसलिए वह अपने-आपको उनसे असंलग्न ही रखता है, और उनमें आसक्त नहीं होता ।
--
’सज्जते’ / ’sajjate’ - gets involved, is identified with,
Chapter 3, śloka 28,
tattvavittu mahābāho
guṇakarmavibhāgayoḥ |
guṇā guṇeṣu vartanta
iti matvā na sajjate ||
--
(tattvavit tu mahābāho
guṇakarmavibhāgayoḥ |
guṇāḥ guṇeṣu vartante
iti matvā na sajjate ||)
--
Meaning :
The one who knows the Reality, knows for certain that according to the divison of attributes (guṇa-s) and actions (karma), all things happen, -actions (karma) take place because of the mutual interaction of the attributes (guṇa-s) only, and keeps oneself unconcerned and un-involved with them.
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’सज्जते’ / ’sajjate’ - आसक्त होता है,
अध्याय 3, श्लोक 28,
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥
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(तत्त्ववित् तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणाः गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा न सज्जते ॥)
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भावार्थ :
हे महाबाहु (अर्जुन)! तत्व को जाननेवाला भली-भाँति जानता है कि गुणों के और कर्मों के वर्गीकरण के अनुसार, गुण ही गुणों में परस्पर व्यवहार करते हुए कर्म को घटित करते हैं, और इसलिए वह अपने-आपको उनसे असंलग्न ही रखता है, और उनमें आसक्त नहीं होता ।
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’सज्जते’ / ’sajjate’ - gets involved, is identified with,
Chapter 3, śloka 28,
tattvavittu mahābāho
guṇakarmavibhāgayoḥ |
guṇā guṇeṣu vartanta
iti matvā na sajjate ||
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(tattvavit tu mahābāho
guṇakarmavibhāgayoḥ |
guṇāḥ guṇeṣu vartante
iti matvā na sajjate ||)
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Meaning :
The one who knows the Reality, knows for certain that according to the divison of attributes (guṇa-s) and actions (karma), all things happen, -actions (karma) take place because of the mutual interaction of the attributes (guṇa-s) only, and keeps oneself unconcerned and un-involved with them.
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