आज का श्लोक,
’सचराचरम्’ / ’sacarācaram’
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’सचराचरम्’ / ’sacarācaram’ - सचल और अचल,
अध्याय 9, श्लोक 10,
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मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥
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(मया अध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स-चराचरम् ।
हेतुना-अनेन कौन्तेय जगत् विपरिवर्तते ॥)
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भावार्थ :
मेरे ही पूर्ण नियंत्रण में प्रकृति चर-अचर जगत् को जन्म देती है । इन हेतुओं से, इन कारणों, उद्देश्यों, प्रयोजनों आदि से, जगत् सतत् परिवर्तनों से गुज़रता हुआ प्रतीत होता रहता है ।
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अध्याय 11, श्लोक 7,
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्दृष्टुमिच्छसि ।
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(इह एकस्थम् जगत् कृत्स्नम् पश्य अद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यत्-च अन्यत्-दृष्टुम् इच्छसि ॥)
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भावार्थ :
हे गुडाकेश (अर्जुन)! इस मेरी देह (मेरे चैतन्य स्वरूप) में एक ही स्थान पर समस्त चर-अचर सहित सम्पूर्ण जगत् को, तथा अन्य और जो कुछ भी देखने की इच्छा तुम्हें हो वह भी अभी ही देख लो !
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’सचराचरम्’ / ’sacarācaram’
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’सचराचरम्’ / ’sacarācaram’ - सचल और अचल,
अध्याय 9, श्लोक 10,
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मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥
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(मया अध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स-चराचरम् ।
हेतुना-अनेन कौन्तेय जगत् विपरिवर्तते ॥)
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भावार्थ :
मेरे ही पूर्ण नियंत्रण में प्रकृति चर-अचर जगत् को जन्म देती है । इन हेतुओं से, इन कारणों, उद्देश्यों, प्रयोजनों आदि से, जगत् सतत् परिवर्तनों से गुज़रता हुआ प्रतीत होता रहता है ।
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अध्याय 11, श्लोक 7,
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्दृष्टुमिच्छसि ।
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(इह एकस्थम् जगत् कृत्स्नम् पश्य अद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यत्-च अन्यत्-दृष्टुम् इच्छसि ॥)
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भावार्थ :
हे गुडाकेश (अर्जुन)! इस मेरी देह (मेरे चैतन्य स्वरूप) में एक ही स्थान पर समस्त चर-अचर सहित सम्पूर्ण जगत् को, तथा अन्य और जो कुछ भी देखने की इच्छा तुम्हें हो वह भी अभी ही देख लो !
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’सचराचरम्’ / ’sacarācaram’ - moving and static things and beings,
Chapter 9, śloka 10,
mayādhyakṣeṇa prakṛtiḥ
sūyate sacarācaram |
hetunānena kaunteya
jagadviparivartate ||
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(mayā adhyakṣeṇa prakṛtiḥ
sūyate sa-carācaram |
hetunā-anena kaunteya
jagat viparivartate ||)
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Meaning :
Under My Authority, prakRti (The nature with its three attributes) manifests / gives birth to all animate and inanimate beings. And because of this reason only, world is in a state of continuous change.
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Chapter 11, śloka 7,
ihaikasthaṃ jagatkṛtsnaṃ
paśyādya sacarācaram |
mama dehe guḍākeśa
yaccānyaddṛṣṭumicchasi |
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(iha ekastham jagat kṛtsnam
paśya adya sacarācaram |
mama dehe guḍākeśa
yat-ca anyat-dṛṣṭum icchasi ||)
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Meaning :
O guḍākeśa (arjuna)!
See now and here at one place, in MY Being, the whole world along-with all the moving and static things, and whatever else you wish to see.
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