Monday, July 14, 2014

आज का श्लोक, ’सत्त्वस्थाः’ / ’sattvasthāḥ’

आज का श्लोक,
’सत्त्वस्थाः’ / ’sattvasthāḥ’ 
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’सत्त्वस्थाः’ / ’sattvasthāḥ’ - सत्त्वगुण, जिनके चित्त की स्थिरता निर्दोष शुद्ध चेतना में होती है,

अध्याय 14, श्लोक 18,

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्थाः मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥
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(ऊर्ध्वम् गच्छन्ति सत्त्वस्थाः मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्थाः अधः गच्छन्ति तामसाः ॥)
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भावार्थ :
सत्त्वगुण (की वृत्ति) में स्थित रहनेवाला चेतना की उच्चतर स्थितियों की ओर गतिशील होता है, रजोगुण (की वृत्ति) में स्थित रहनेवाला जहाँ का तहाँ रहता है, और जघन्यगुण (निन्दनीय) वृत्ति में स्थित रहनेवाला अधोगति की ओर गतिशील होता है ।
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’सत्त्वस्थाः’ / ’sattvasthāḥ’ - Those who try to stay in the purity of consciousness,

Chapter 14, śloka 18,

ūrdhvaṃ gacchanti sattvasthāḥ 
madhye tiṣṭhanti rājasāḥ |
jaghanyaguṇavṛttisthā
adho gacchanti tāmasāḥ ||
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(ūrdhvam gacchanti sattvasthāḥ 
madhye tiṣṭhanti rājasāḥ |
jaghanyaguṇavṛttisthāḥ
adhaḥ gacchanti tāmasāḥ ||)
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Meaning :
Those who try to stay in the purity of consciousness, (in the state of mind where one is aware of just being only), attain the elevated state, those who remain as they are and are lead by their modes (vṛtti) of mind keep stagnant, while those who indulge in the evil tendencies of delusion and ignorance keep falling.
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