Monday, March 3, 2014

आज का श्लोक, ’स्मृतिभ्रंशात्’ / 'smRtibhraMshAt'

आज का श्लोक, ’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'
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’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'  -  स्मृति में व्यवधान और भ्रम के कारण
अध्याय  2, श्लोक 63,
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क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥
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क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्-स्मृतिविभ्रमः ।
स्मृति-भ्रंशात्-बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात्-प्रणश्यति ॥
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भावार्थ :
क्रोध से चित्त अत्यन्त मोहाविष्ट हो जाता है, चित्त के  अत्यन्त मूढता से आविष्ट होने पर स्मृति विभ्रमित हो जाती है, स्मृति के विभ्रमित हो जाने पर बुद्धि अर्थात् विवेक-बुद्धि नष्ट हो जाती है, और विवेक-बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य विनष्ट हो जाता है ।
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’स्मृतिभ्रंशात्’  / 'smRtibhraMshAt'  - owing to the disturbance / confusion in the memory.
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Chapter 2, shloka 63,
krodhAdbhavati sammohaH
sammohAtsmRti-vibhramaH
smRtibhraMshAdbuddhinAsho
buddhinAshAtpraNashyati ||
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 Meaning :
Anger causes the delusion, and delusion results in the confusion of memory. Confusion in memory further causes loss of capacity to distinguish between the right and the wrong, the truth and the false, and once this capacity is lost, one is totally ruined.
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