Friday, March 21, 2014

आज का श्लोक, ’सेवते’ / 'sewate',

आज का श्लोक, ’सेवते’ / 'sewate',
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’सेवते’ / 'sewate', - उपासना करता है ।


अध्याय  14, श्लोक 26,

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥
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(माम् च यः अव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
सः गुणान् समतीत्य- एतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥)
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और जो मनुष्य विशुद्ध निष्ठापूर्वक भक्तियोगसहित मेरी सेवा (उपासना) करता है, वह इन तीनों गुणों को भलीभाँति लाँघकर, इनसे पार हुआ, सच्चिदाननद ब्रह्म से एकीभूत हो जाता है ।
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’सेवते’ / 'sewate', - serves, attends to, worships,

Chapter 14, shloka 26,
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mAM cha yo'vyabhichAreNa
bhaktiyogena sewate |
sa guNAnsamatItyaitAn
brahmabhUyAya kalpate ||
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Meaning :
One who serves / attends to Me with uncontaminated devotion transcends these three attributes (guNa-s) and is unified with Brahman (Me).
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