आज का श्लोक, ’स्थिरबुद्धिः’ / 'sthirabuddhiH'
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अध्याय 5, श्लोक 20,
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’स्थिरबुद्धिः’ / 'sthirabuddhiH' - स्थिर और शान्त मनवाला,
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न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः ॥
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(न प्रहृष्येत्-प्रियं प्राप्य न-उद्विजेत्-प्राप्य च-अप्रियं ।
स्थिरबुद्धिः असम्मूढः ब्रह्मविद्-ब्रह्मणि स्थितः ॥)
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भावार्थ :
ब्रह्म (के स्वरूप) को जानकर ब्रह्म में अवस्थित रहनेवाला स्थिरबुद्धि, संशय से सर्वथा रहित मनुष्य न तो प्रिय के प्राप्त होने पर हर्षित होता है और न अप्रिय के प्राप्त होने पर उद्विग्न होता है ।
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’स्थिरबुद्धिः’ / 'sthirabuddhiH' - of stable and calm mind,
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Chapter 5, shloka 20,
na prahRShyetpriyaM prApya
nodvijetprApya chApriyaM |
sthirabuddhirasammUDho
brahmavid-brahmaNi sthitaH ||
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Meaning :
One, who has realized the Reality (Brahman) abides ever in Brahman, is neither elated when comes across the pleasant, nor is perturbed when something unpleasant meets Him. Such a One, of stable and calm mind is free from delusion.
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अध्याय 5, श्लोक 20,
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’स्थिरबुद्धिः’ / 'sthirabuddhiH' - स्थिर और शान्त मनवाला,
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न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः ॥
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(न प्रहृष्येत्-प्रियं प्राप्य न-उद्विजेत्-प्राप्य च-अप्रियं ।
स्थिरबुद्धिः असम्मूढः ब्रह्मविद्-ब्रह्मणि स्थितः ॥)
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भावार्थ :
ब्रह्म (के स्वरूप) को जानकर ब्रह्म में अवस्थित रहनेवाला स्थिरबुद्धि, संशय से सर्वथा रहित मनुष्य न तो प्रिय के प्राप्त होने पर हर्षित होता है और न अप्रिय के प्राप्त होने पर उद्विग्न होता है ।
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’स्थिरबुद्धिः’ / 'sthirabuddhiH' - of stable and calm mind,
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Chapter 5, shloka 20,
na prahRShyetpriyaM prApya
nodvijetprApya chApriyaM |
sthirabuddhirasammUDho
brahmavid-brahmaNi sthitaH ||
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Meaning :
One, who has realized the Reality (Brahman) abides ever in Brahman, is neither elated when comes across the pleasant, nor is perturbed when something unpleasant meets Him. Such a One, of stable and calm mind is free from delusion.
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