Thursday, March 6, 2014

आज का श्लोक, ’स्थिराम्’ / 'sthirAM'

आज का श्लोक, ’स्थिराम्’ / 'sthirAM'
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स्थिराम् - नित्यता को, स्थायित्व को,
अध्याय 6, श्लोक 33,
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अर्जुन उवाच,
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम्
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(यो अयम् योगः त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।
एतस्य-अहम् न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिम् स्थिराम् ।)
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(पिछले श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण ने ’समत्व’ के बारे में अर्जुन से जो कहा,
उसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने कहा :)
भावार्थ :
हे मधुसूदन ! समत्व-भाव के माध्यम से किए जानेवाले जिस योग के बारे में आपके द्वारा कहा गया, उसका अभ्यास सदैव कैसे किया जा सकता है, इसे (अपने चित्त-मन की) चञ्चलता के कारण मैं देख-समझ नहीं पा रहा ।
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’स्थिराम्’ / 'sthirAM' - stability,
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Chapter 6, shloka 33,
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yo'yaM yogastvayA proktaH
sAmyena madhusUdana |
etasyAhaM na pashyAmi
chanchalatvAtsthitiM sthirAM ||
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Meaning :
arjuna said: "Because of my fickle mind, I am unable to see how I can practice this, The yoga of even-mindedness, that you enunciated for me, O madhusUdana (shrikrRShNa)!
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