Monday, March 24, 2014

आज का श्लोक, ’सूक्ष्मत्वात्’ / 'sUkShmatvAt'

आज का श्लोक, ’सूक्ष्मत्वात्’ / 'sUkShmatvAt'
__________________________________

’सूक्ष्मत्वात्’ / 'sUkShmatvAt' -सूक्ष्म, बारीक, महीन होने से,

अध्याय 13, श्लोक 15,

बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च ।
सूक्ष्मत्वादविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥

(बहिः अन्तः च भूतानाम् अचरम् चरम् एव च ।
सूक्ष्मत्वात् अविज्ञेयं दूरस्थम् च अन्तिके च यत् ॥

भावार्थ :
वह, जो सभी चर एवं अचर भूतों के रूप में तथा उनसे भीतर-बाहर भी है, जो दूर से दूर एवं निकट से भी समीप है, सर्वाधिक सूक्ष्म होने के कारण मन-बुद्धि एवं इन्द्रियों की पकड़ में नहीं आ पाता ।  
--

’सूक्ष्मत्वात्’ / 'sUkShmatvAt' - because is subtle-most.
Chapter 13, shloka 15,
--
bahirantashcha bhUtAnAM
acharaM charameva cha |
sUkShmatvAdavijneyaM
dUrasthaM chAntike cha tat ॥
--
Meaning :
That (Brahman), Who dwells within and without, in all beings and beyond them, He is farther than the farthest and near than the nearest, being subtle-most, is beyond the grasp of the senses, mind or intellect.
--

No comments:

Post a Comment