Sunday, March 23, 2014

आज का श्लोक, ’सृती’ / 'sRtI'

आज का श्लोक, ’सृती’ / 'sRtI'
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’सृती’ / 'sRtI' -( सृ ’गति’ के अर्थ में, सृति,
सृतिः > मार्ग,  > सृती; द्विवचन, दो मार्ग, दो मार्गों को*,)

अध्याय 8, श्लोक 27,
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नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥
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(न एते सृती पार्थ जानन् योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्-सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥)
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भावार्थ :
इन दोनों मार्गों को* जानता हुआ कोई भी योगी मोहबुद्धि से ग्रस्त नहीं होता, अर्थात् मृत्यु के बाद भविष्य में होनेवाली उसकी गति / अवस्था के बारे में उसे दुविधा नहीं होती ।
इसलिए हे अर्जुन! तुम सभी कालों में, सदैव ही योगयुक्त हो रहो ।
(*इसी अध्याय 8 में पिछले श्लोक, क्रमांक 26 में वर्णित ’शुक्ल’ तथा ’कृष्ण’ गतियाँ)
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’सृती’ / 'sRtI' - the two different paths* available to a yogI after his death.

Chapter 9, shloka 27,

naite sRtI pArtha jAnan
yogI muhyati kashchana |
tasmAtsarveShu kAleShu
yogayukto bhavArjuna ||
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Meaning :
These two different paths* are available to one who practises the way of 'Yoga'. Therefore O arjuna! keep on practising Yoga at all times.
*The two paths (’शुक्ल’, shukla and ’कृष्ण’ kRShNa,) as described in the previous shloka 26 of this chapter 8)
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1 comment:

  1. The correct Chapter number is 8, and not 9, as given due to a mistake. Please also check this reference in Hindi Translation.
    Could 'update' this post, but left undone because of some obvious reasons.

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