आज का श्लोक ’स्पृशन्’/ 'spRshan'
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’स्पृशन्’/ 'spRshan' - स्पर्श करते हुए,
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अध्याय 5, श्लोक 8,
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नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥
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(नैव किञ्चित्-करोमि-इति युक्तः मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यन्-शृण्वन्-स्पृशन्-जिघ्रन्-अश्नन्-गच्छन्-स्वपन्-श्वसन् ॥)
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भावार्थ : तत्व को जाननेवाला (सांख्य) योगी देखते हुए, सुनते हुए, स्पर्श करते हुए, सूँघते हुए, खाते हुए, आते-जाते हुए, सोते हुए, तथा श्वास लेते हुए भी, ’मैं यह सब करता हूँ’ ऐसी बुद्धि कभी नहीं रखता ।
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’स्पृशन्’/ 'spRshan' -while touching.
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Chapter 5, shloka 8,
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naiva kinchitkaromIti
yukto manyeta tattvavit |
pashyan-shRNvan-spRshan-jiGhran-
ashnan-gachchhan-swapan-shvasan ||
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Meaning :
One who knows Reality and is well established in the 'Self', never takes himself as the doer of those actions like 'seeing', 'hearing', 'touch', 'smell', 'eating', 'going and coming' 'dreaming / sleeping', that seem to happen to the body-mind only and not to the 'Self' he abides in.
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’स्पृशन्’/ 'spRshan' - स्पर्श करते हुए,
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अध्याय 5, श्लोक 8,
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नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥
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(नैव किञ्चित्-करोमि-इति युक्तः मन्येत तत्त्ववित् ।
पश्यन्-शृण्वन्-स्पृशन्-जिघ्रन्-अश्नन्-गच्छन्-स्वपन्-श्वसन् ॥)
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भावार्थ : तत्व को जाननेवाला (सांख्य) योगी देखते हुए, सुनते हुए, स्पर्श करते हुए, सूँघते हुए, खाते हुए, आते-जाते हुए, सोते हुए, तथा श्वास लेते हुए भी, ’मैं यह सब करता हूँ’ ऐसी बुद्धि कभी नहीं रखता ।
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’स्पृशन्’/ 'spRshan' -while touching.
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Chapter 5, shloka 8,
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naiva kinchitkaromIti
yukto manyeta tattvavit |
pashyan-shRNvan-spRshan-jiGhran-
ashnan-gachchhan-swapan-shvasan ||
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Meaning :
One who knows Reality and is well established in the 'Self', never takes himself as the doer of those actions like 'seeing', 'hearing', 'touch', 'smell', 'eating', 'going and coming' 'dreaming / sleeping', that seem to happen to the body-mind only and not to the 'Self' he abides in.
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