Tuesday, March 25, 2014

आज का श्लोक, ’सुहृदं’ / 'suhRdaM'

आज का श्लोक, ’सुहृदं’ / 'suhRdaM'
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’सुहृदं’ / 'suhRdaM' - आत्मीय को,

अध्याय 5, श्लोक 29,
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भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥
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(भोक्तारम् यज्ञतपसाम् सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदम् सर्वभूतानाम् ज्ञात्वा माम् शान्तिम् ऋच्छति ॥)
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भावार्थ :
सब यज्ञों और तपों के भोगनेवाले, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों के भी ईश्वर, सभी भूतप्राणियों के आत्मीय, मुझको जानकर शान्ति को प्राप्त होता है ।
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’सुहृदं’ / 'suhRdaM' - (to) The most beloved,

Chapter 5, shloka 29,

bhoktAraM yajna-tapasAM
sarvaloka-maheshvaraM |
suhRdaM sarvabhUtAnAM
jnAtvA shAntimRchchhati ||
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Knowing, Me / I AM, the goal of all sacrifices and austerities, The Lord of all the worlds and their respective gods, And beloved of all beings, one attains supreme peace.
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