Friday, March 28, 2014

आज का श्लोक, ’सुदुष्करम्’ / 'suduShkaraM'

आज का श्लोक, ’सुदुष्करम्’ / 'suduShkaraM'
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’सुदुष्करम्’ / 'suduShkaraM' - बहुत कठिन,

अध्याय 6, श्लोक 34,

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्
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(चञ्चलम् हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवत्-दृढम् ।
तस्य-अहं निग्रहम् मन्ये वायोः-इव सुदुष्करम् ॥)
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भावार्थ :
क्योंकि हे कृष्ण, (यह मेरा) मन बड़ा चञ्चल, विक्षोभ के स्वभाववाला, बलशाली तथा दृढ (हठी) है । मैं मानता हूँ कि उसका निग्रह करना वायु को रोकने की तरह एक बहुत कठिन कार्य है ।
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’सुदुष्करम्’ / 'suduShkaraM' - a difficult task,

Chapter 6, shloka 34,

chanchalaM hi manaH kRShNa
pramAthi balavaddRDhaM |
tasyAhaM nigrahaM manye
vAyoH-iva suduShkaraM ||
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O kRShNa! Certainly, (This) mind by the very nature, is restless,, turbulent, very powerful, and obstinate. Keeping it under check seems to me as difficult as controlling the movement of the wind.
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