Sunday, March 16, 2014

आज का श्लोक, ’स्त्रियः’/ 'striyaH'

आज का श्लोक,  ’स्त्रियः’/ 'striyaH'
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’स्त्रियः’/ 'striyaH' - स्त्रियाँ,

अध्याय 9, श्लोक 32,

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
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(माम् हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः ते अपि यान्ति पराम् गतिम् ॥)
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भावार्थ :
हे अर्जुन, मेरे आश्रय में शरण लेनेवाले भक्त पापयोनि भी हों, अर्थात् भले ही उन्होंने पापजनित कुसंस्कारों सहित जन्म लिया हो, या स्त्री, वैश्य अथवा शूद्र ही हों, वे भी परम गति को ही (अर्थात् मुझे ही, मेरे ही उस परम धाम को प्राप्त होते हैं, जहाँ से पुनः जन्म-मृत्यु नहीं होते ।)
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’स्त्रियः’/ 'striyaH' - women,
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Chapter 9, shloka 32,
mAM hi pArtha vyapAshritya
ye'pi syuH pApayonayaH |
striyaH vaishyAstathA shUdrA
ste'pi yAnti parAM gatiM ||
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Meaning :
Who-so-ever seeking shelter in Me, be they of sinful birth, women, or born in lower castes like vaishyas, or even shUdras, all they attain the Supreme state.
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