आज का श्लोक, ’सुखी’ / 'sukhI',
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’सुखी’ / 'sukhI', - सुखी, प्रसन्न,
अध्याय 5, श्लोक 23,
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥
(शक्नोति इह एव यः सोढुम् प्राक् शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवम् वेगम् सः युक्तः सः सुखी नरः ॥)
--
भावार्थ :
वह साधक जो कि इस शरीर के जीते-जी ही, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से पैदा होनेवाले वेग को सहन करने में सक्षम हो जाता है, निश्चय ही वह मनुष्य योगी है और वही सुखी है ।
--
अध्याय 16, श्लोक 14,
--
असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोsहं बलवान्सुखी ॥
--
(असौ मया हतः शत्रुः हनिष्ये च अपरानपि ।
ईश्वरः अहं अहं भोगी सिद्धः अहं बलवान् सुखी ॥)
*
भावार्थ :
वह शत्रु मेरे द्वारा मारा जा चुका, दूसरों को भी मार डालूँगा । मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ, मैं ही सब सुखों का भोगकर्ता हूँ । मैं ही यशस्वी, बलवान और सुखी हूँ ।
--
’सुखी’ / 'sukhI', - happy,
Chapter 5, shloka 23,
shaknotIhava soDhuM
prAksharIravimokShaNAt |
kAmakrodhodbhavaM vegaM
sa yuktaH sa sukhI naraH ||
--
Far before the body falls as dead, one who can manage to face the urges of lust and anger (and can control them) is indeed a yogi, and he alone is truly a happy man.
--
Chapter 16, shloka 14,
*
asau mayA hataH shatrur-
haniShye chAparAnapi |
Ishvaro'hamahaM bhogI
siddho'haM balavAnsukhI ||
--
Meaning :
That one enemy has been killed by me, I shall sure kill the others too. I am the lord, I alone enjoy all the riches, I am successful, powerful and happy.
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’सुखी’ / 'sukhI', - सुखी, प्रसन्न,
अध्याय 5, श्लोक 23,
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥
(शक्नोति इह एव यः सोढुम् प्राक् शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवम् वेगम् सः युक्तः सः सुखी नरः ॥)
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भावार्थ :
वह साधक जो कि इस शरीर के जीते-जी ही, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से पैदा होनेवाले वेग को सहन करने में सक्षम हो जाता है, निश्चय ही वह मनुष्य योगी है और वही सुखी है ।
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अध्याय 16, श्लोक 14,
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असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोsहं बलवान्सुखी ॥
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(असौ मया हतः शत्रुः हनिष्ये च अपरानपि ।
ईश्वरः अहं अहं भोगी सिद्धः अहं बलवान् सुखी ॥)
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भावार्थ :
वह शत्रु मेरे द्वारा मारा जा चुका, दूसरों को भी मार डालूँगा । मैं ही सर्वशक्तिमान हूँ, मैं ही सब सुखों का भोगकर्ता हूँ । मैं ही यशस्वी, बलवान और सुखी हूँ ।
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’सुखी’ / 'sukhI', - happy,
Chapter 5, shloka 23,
shaknotIhava soDhuM
prAksharIravimokShaNAt |
kAmakrodhodbhavaM vegaM
sa yuktaH sa sukhI naraH ||
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Far before the body falls as dead, one who can manage to face the urges of lust and anger (and can control them) is indeed a yogi, and he alone is truly a happy man.
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Chapter 16, shloka 14,
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asau mayA hataH shatrur-
haniShye chAparAnapi |
Ishvaro'hamahaM bhogI
siddho'haM balavAnsukhI ||
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Meaning :
That one enemy has been killed by me, I shall sure kill the others too. I am the lord, I alone enjoy all the riches, I am successful, powerful and happy.
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