Friday, March 7, 2014

आज का श्लोक, ’स्थिरमतिः’ / 'sthiramatiH'

आज का श्लोक, ’स्थिरमतिः’ / 'sthiramatiH'
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’स्थिरमतिः’ / 'sthiramatiH' - जिसका मन चञ्चल न हो, स्थिरतापूर्वक एक विषय पर संलग्न रह सके ।
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अध्याय 12, श्लोक 19,
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तुल्यनिन्दास्तुतुर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् ।
अनिकेतः स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नरः ॥
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(तुल्यनिन्दास्तुतिः मौनी सन्तुष्टः यन केनचित् ।
अनिकेतः स्थिरमतिः भक्तिमान् मे प्रियः नरः ॥)
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भावार्थ
जो निन्दा तथा स्तुति को समान समझता हो, मननशील, और जिस किसी भी प्रकार से सरलतापूर्वक जीवन-निर्वाह कर लेने में ही सन्तोष अनुभव करता है, संसार में अपना कहीं घर नहीं बनाता, अर्थात् रहने के स्थान से ममता या आसक्ति से रहित होता है, ऐसा स्थिरमति मनुष्य मुझको प्रिय है ।
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’स्थिरमतिः’ / 'sthiramatiH' - stable in mind,
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Chapter 12, shloka 19,
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tulyanindAstutirmaunI*
santuShTo yena kenachit |
aniketaH sthirmatiH
bhaktimAn-me priyo naraH ||
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Meaning :
One, who takes praise and blame alike, keeps on meditating, remains ever happy irrespective of whatever life offers him, has no attachment for a place of living, is stable in mind and is full of devotion to Me, such a man is dear to Me.
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(maunI in Sanskrit means one who practices 'maunaM', and 'maunaM' is derived from the root 'man' > 'manute', 'manyate' > to think about, reasoning, contemplate about, to meditate)
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