आज का श्लोक, ’सेनयोः’ / 'senayoH'
__________________________________
’सेनयोः’ / 'senayoH' - दोनों सेनाओं के मध्य, दोनों सेनाओं में,
अध्याय 1, श्लोक 21,
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
अर्जुन उवाच -
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥
--
(हृषीकेशम् तदा वाक्यम् इदम् आह महीपते ।
अर्जुन उवाच -
सेनयोः उभयोः मध्ये रथम् स्थापय मे अच्युत ॥)
--
भावार्थ :
(सञ्जय राजा धृतराष्ट्र को संबोधित करते हुए उनसे कहते हैं, -)
--
हे राजन् ! अर्जुन ने तब यह वाक्य कहा ।
अर्जुन ने कहा -
हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लाकर स्थापित करो !
--
अध्याय 1, श्लोक 24,
सञ्जय उवाच -
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥
--
(एवम्-उक्तः हृषीकेशः गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोः उभयोः मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥)
--
भावार्थ :
सञ्जय ने कहा - हे भारत (हे धृतराष्ट्र)! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार से (गत श्लोक में जैसा वर्णित है, उस क्रम में ) कहे जाने पर, हृषीकेश (श्रीकृष्ण भगवान्) ने दोनों सेनाओं के मध्य रथ खड़ा कर यह कहा , ...
--
अध्याय 1, श्लोक 27,
श्वसुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥
--
श्वसुरान् सुहृदः च एव सेनयोः उभयोः अपि ।
तान् समीक्ष्य सः कौन्तेयः सर्वान् बन्धून् अवस्थितान् ॥)
--
भावार्थ :
श्वसुरों को, सुहृदों को, दोनों ही सेनाओं में अवस्थित अपने सारे बन्धुओं को देखकर वह कुन्तीपुत्र अर्जुन,....
--
अध्याय 2 , श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥
--
(तम् उवाच हृषीकेशः प्रहसन्-इव भारत ।
सेनयोः उभयोः मध्ये विषीदन्तम् इदम् वचः ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (हे भरतवंशी धृतराष्ट्र)! दोनों सेनाओं के बीच, विषाद में डूबे, उस (अर्जुन) को हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने मानों हँसते हुए कह रहे हों, यह वचन कहे ।
--
’सेनयोः’ / 'senayoH' - in the armies, between the armies,
Chapter 1, shloka 21.
--
hRShIkeshaM tadA vAkya
midamAha mahIpate |
Arjuna uvAcha -
senayorubhayormadhye
rathaM sthApaya me'chyuta ||
--
Meaning :
Then, O King ! ( Thus was addressed dhRtarAShTra by Sanjaya, who narrated to the King dhRtarAShTra, whatever was happening on the battle-ground where the Armies were getting prepared for the war of mahAbhArata.)
arjuna said to shrikRShNa :
O achyuta ( shrIkRShNa)! Please take to, and place my chariot at the centre of the battle-field .
--
Chapter 1, shloka 24,
sanjaya said :
evamukto hRShIkesho
guDAkeshena bhArata |
senayorubhayormadhye
sthApayitvA rathottamaM ||
--
sanjaya, said (to dhRtarAshTra,)
O bhArata (King dhRtaraShTra)! being thus addressed by guDAkesha (arjuna), hRShikesha (Lord shrIkRShNa) brought forth the magnificent chariot in the middle of both armies.
--
Chapter 1, shloka 27,
--
shvasurAnsuhRdashchaiva
senayorubhayorapi |
tAnsamIkShya sa kaunteya
sarvAnbandhUnavasthitAn ||
--
Meaning :
(He, -arjuna saw there,) his fathers-in-law, dear-ones and well-wishers, standing before him in both the armies. And Having seen them all his brethren, ...
Chapter 2, shloka 10,
tamuvAcha hRShIkeshaH
prahasanniva bhArat |
senayorubhayormadhye
viShIdantamidaM vachaH ||
--
Meaning :
(sanjaya addressing dhRtarAShTra, said,)
O bhArata (descendant of King bharata)! In the midst of the two armies, hRiShIkesha (shrIkRShNa) said with a gesture, as if with a smile, To him (to arjuna), who was grief-stricken, these words.
--
__________________________________
’सेनयोः’ / 'senayoH' - दोनों सेनाओं के मध्य, दोनों सेनाओं में,
अध्याय 1, श्लोक 21,
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
अर्जुन उवाच -
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥
--
(हृषीकेशम् तदा वाक्यम् इदम् आह महीपते ।
अर्जुन उवाच -
सेनयोः उभयोः मध्ये रथम् स्थापय मे अच्युत ॥)
--
भावार्थ :
(सञ्जय राजा धृतराष्ट्र को संबोधित करते हुए उनसे कहते हैं, -)
--
हे राजन् ! अर्जुन ने तब यह वाक्य कहा ।
अर्जुन ने कहा -
हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में लाकर स्थापित करो !
--
अध्याय 1, श्लोक 24,
सञ्जय उवाच -
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥
--
(एवम्-उक्तः हृषीकेशः गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोः उभयोः मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥)
--
भावार्थ :
सञ्जय ने कहा - हे भारत (हे धृतराष्ट्र)! गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा इस प्रकार से (गत श्लोक में जैसा वर्णित है, उस क्रम में ) कहे जाने पर, हृषीकेश (श्रीकृष्ण भगवान्) ने दोनों सेनाओं के मध्य रथ खड़ा कर यह कहा , ...
--
अध्याय 1, श्लोक 27,
श्वसुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥
--
श्वसुरान् सुहृदः च एव सेनयोः उभयोः अपि ।
तान् समीक्ष्य सः कौन्तेयः सर्वान् बन्धून् अवस्थितान् ॥)
--
भावार्थ :
श्वसुरों को, सुहृदों को, दोनों ही सेनाओं में अवस्थित अपने सारे बन्धुओं को देखकर वह कुन्तीपुत्र अर्जुन,....
--
अध्याय 2 , श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥
--
(तम् उवाच हृषीकेशः प्रहसन्-इव भारत ।
सेनयोः उभयोः मध्ये विषीदन्तम् इदम् वचः ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (हे भरतवंशी धृतराष्ट्र)! दोनों सेनाओं के बीच, विषाद में डूबे, उस (अर्जुन) को हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने मानों हँसते हुए कह रहे हों, यह वचन कहे ।
--
’सेनयोः’ / 'senayoH' - in the armies, between the armies,
Chapter 1, shloka 21.
--
hRShIkeshaM tadA vAkya
midamAha mahIpate |
Arjuna uvAcha -
senayorubhayormadhye
rathaM sthApaya me'chyuta ||
--
Meaning :
Then, O King ! ( Thus was addressed dhRtarAShTra by Sanjaya, who narrated to the King dhRtarAShTra, whatever was happening on the battle-ground where the Armies were getting prepared for the war of mahAbhArata.)
arjuna said to shrikRShNa :
O achyuta ( shrIkRShNa)! Please take to, and place my chariot at the centre of the battle-field .
--
Chapter 1, shloka 24,
sanjaya said :
evamukto hRShIkesho
guDAkeshena bhArata |
senayorubhayormadhye
sthApayitvA rathottamaM ||
--
sanjaya, said (to dhRtarAshTra,)
O bhArata (King dhRtaraShTra)! being thus addressed by guDAkesha (arjuna), hRShikesha (Lord shrIkRShNa) brought forth the magnificent chariot in the middle of both armies.
--
Chapter 1, shloka 27,
--
shvasurAnsuhRdashchaiva
senayorubhayorapi |
tAnsamIkShya sa kaunteya
sarvAnbandhUnavasthitAn ||
--
Meaning :
(He, -arjuna saw there,) his fathers-in-law, dear-ones and well-wishers, standing before him in both the armies. And Having seen them all his brethren, ...
Chapter 2, shloka 10,
tamuvAcha hRShIkeshaH
prahasanniva bhArat |
senayorubhayormadhye
viShIdantamidaM vachaH ||
--
Meaning :
(sanjaya addressing dhRtarAShTra, said,)
O bhArata (descendant of King bharata)! In the midst of the two armies, hRiShIkesha (shrIkRShNa) said with a gesture, as if with a smile, To him (to arjuna), who was grief-stricken, these words.
--
No comments:
Post a Comment