Friday, March 7, 2014

आज का श्लोक, - ’स्थितिः’ / 'sthitiH'

आज का श्लोक  - ’स्थितिः’ / 'sthitiH'
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’स्थितिः’ / 'sthitiH' - स्थिति, प्रसंग, अवस्था, स्वरूप,
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अध्याय 2, श्लोक 72,
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एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥
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(एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ न एनाम् प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वा अस्याम् अन्तकाले अपि ब्रह्मनिर्वाणम् ऋच्छति ॥)
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भावार्थ :
हे पार्थ (हे अर्जुन!) यह वह ब्राह्म-अवस्था है, जिसे पाकर मनुष्य फिर कभी मोहित-बुद्धि नहीं होता । और इसमें स्थित हुआ वह अन्तकाल में भी ब्रह्मरूपी निर्वाणपद को प्राप्त हो जाता है ।
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अध्याय 17, श्लोक 27,
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यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते ।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते ॥
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(यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सत्-इति च उच्यते ।
कर्म च एव तदर्थीयम् सत्-इति-एव-अभिधीयते ॥)
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भावार्थ :
इस रीति से किए जानेवाले यज्ञ, तप एवं दान आदि के ऐसे (पिछले श्लोक में वर्णित) रूप को ’सत्’ कहा जाता है, तथा उसी प्रकार से किए जानेवाले तदनुरूप कर्म को भी उसी (सत् के) अर्थ में ग्रहण किया जाता है ।
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(टिप्पणी : इसी अध्याय 17 के श्लोक 23 में स्पष्ट किए गए अनुसार, ब्रह्म का निर्देश ’ॐ’, ’तत्’ एवं ’सत्’ इन तीन पदोंसे किया जाता है । ’सत्’ का तात्पर्य यहाँ इसी अर्थ में ग्राह्य है ।)
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’स्थितिः’ / 'sthitiH' - state, revelation, realization,
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Chapter 2, shloka 72,
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eShA brAhmI sthitiH pArtha
nainAM prApya vimuhyati |
sthitvAsyAmantakAle'pi
brahmanirvANamRchchhati |
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Meaning :
O partha (arjuna) this state of revelation (of the Supreme) is the Reality Ultimate, when attained, one is not bewildered any more. Abiding in It, even at the moment of death while leaving this body, one enters the Brahman only.
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Chapter 17, shloka 27,
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yajne tapasi dAne cha
sthitiH saditi chochyate |
karma chaiva tadarthIyaM
sadityevAbhidhIyate ||
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Meaning :
(Note :  please refer to- ... "Brahman / Reality is described by these 3 terms;
'ouM', 'tat', and 'sat',  ... " > shloka 23, of this chapter 17).
When a yajna (sacrifice), tapas ( austerities, penance) and charity is performed in this specific way, remembering Brahman, dedicated to Him and not for anything else in exchange, is called 'sat'. Like-wise such an action also bears the same meaning of 'sat' and is therefore 'sat' only.
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