आज का श्लोक, ’सुखेन’ / 'sukhena'
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’सुखेन’ / 'sukhena' - अनायास ही, सुखपूर्वक,
अध्याय 6, श्लोक 28,
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमस्नुते ॥
--
(युञ्जन् एवं सदा आत्मानम् योगी विगत कल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शम् अत्यन्तम् सुखम् अश्नुते ॥)
--
भावार्थ :
पापरहित योगी अपने चित्त को निरन्तर उस ब्रह्म में संलग्न रखते हुए अनायास ही ब्रह्म के संस्पर्श के अनन्त आनन्द को अनुभव करने लगता है ।
--
’सुखेन’ / 'sukhena' - with happiness, blissfully,
Chapter 6, shloka 28,
yunjannevaM sadAtmAnaM
yogI vigatakalmaShaH |
sukhena brahmasaMsparsha-
matyantaM sukhamashnute ||
--
Meaning :
Freed from the sins, the aspirant (yogI) fixing one's mind always upon the Self that is Reality only, easily attains the delight of the infinite bliss Which is That (Brahman).
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’सुखेन’ / 'sukhena' - अनायास ही, सुखपूर्वक,
अध्याय 6, श्लोक 28,
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमस्नुते ॥
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(युञ्जन् एवं सदा आत्मानम् योगी विगत कल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शम् अत्यन्तम् सुखम् अश्नुते ॥)
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भावार्थ :
पापरहित योगी अपने चित्त को निरन्तर उस ब्रह्म में संलग्न रखते हुए अनायास ही ब्रह्म के संस्पर्श के अनन्त आनन्द को अनुभव करने लगता है ।
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’सुखेन’ / 'sukhena' - with happiness, blissfully,
Chapter 6, shloka 28,
yunjannevaM sadAtmAnaM
yogI vigatakalmaShaH |
sukhena brahmasaMsparsha-
matyantaM sukhamashnute ||
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Meaning :
Freed from the sins, the aspirant (yogI) fixing one's mind always upon the Self that is Reality only, easily attains the delight of the infinite bliss Which is That (Brahman).
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