Friday, March 21, 2014

आज का श्लोक, ’सोढुम्’ / 'soDhuM'

आज का श्लोक, ’सोढुम्’ / 'soDhuM'
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’सोढुम्’ / 'soDhuM' - सहन करने में ।

अध्याय  5, श्लोक 23,
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥
(शक्नोति इह एव यः सोढुम् प्राक् शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवम् वेगम् सः युक्तः सः सुखी नरः ॥)
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भावार्थ :
वह साधक जो कि इस शरीर के जीते-जी ही, शरीर का नाश होने से पहले ही कामक्रोध से पैदा होनेवाले वेग को सहन करने में सक्षम हो जाता है, निश्चय ही वह मनुष्य योगी है और वही सुखी है ।
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अध्याय 11, श्लोक 44,
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तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वाहमीशमीड्यम् ।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः
प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्
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(तस्मात् प्रणिधाय कायम् प्रसादये त्वाम् अहम् ईशम् ईड्यम् ।
पिता-इव पुत्रस्य सखा-इव सख्युः प्रियः प्रियायाः अर्हसि देव सोढुम् ॥)
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भावार्थ :
अतः आपके समक्ष (चरणों में ) काया और सिर झुकाकर निवेदन करते हुए, ताकि हे पूज्य परमेश्वर आप मुझ पर कृपा करते हुए प्रसन्न हों, और जैसे पिता पुत्र के, सखा सखा के और स्वामी प्रिया के अपराध सहन कर लेता है (और उन्हें क्षमा कर देता है) आप भी मेरे किए अपराध को क्षमा कर दें ।
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’सोढुम्’ / 'soDhuM' - capable of withstanding to, to cope with, to tolerate,
Chapter 5, shloka 23,

shaknotIhava soDhuM
prAksharIravimokShaNAt |
kAmakrodhodbhavaM vegaM
sa yuktaH sa sukhI naraH ||
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Far before the body falls as dead, one who can manage to face the urges of lust and anger (and can control them)  is indeed a yogi, and he alone is a truly a happy man.
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Chapter 11, shloka 44,

tasmAtpraNamya praNidhAya kAyaM
prasAdaye tvAmahamIshamIdyaM |
piteva putrasya sakheva sakhyuH
priyaH priyAyArhasi deva soDhuM ||
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Meaning :
Therefore prostrating before you I ask forgiveness of You, O Lord! Just as a father to his son, a friend to his friend and a lover forgives his dear, please O Lord, Have mercy on me, and forgive me.
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